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का विचार किया गया है । एक सामायिक और प्रतिक्रमण अच्छी तरह से किया जाय तो वृत्तियां पर काबू आ जाता है ।
कुलकों में तो स्थूल उपदेश है परन्तु साधना द्वारा अन्तर्यात्रा की जाय तब ऐसी प्रक्रियाओं का ज्ञान सहज बनता है ।
हम इन कुलकों के उपदेश को मनमें स्थिर कर आत्मा की अनुभूति करने में तत्पर बने यही शुभ भावना |
पू० आ० श्री विजयसुशीलसूरिजी म० सा० ने इन कुलकों का हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दी भाषी जनता का और जैन लोगों पर बड़ा उपकार किया है, यह भुलाया नहीं जा सकता ।
भादवा सुद ४ शनिवार [ श्री संवत्सरी महापर्व ]
ता० १३-९-८०
अम्बालाल प्रेमचन्द शाह अहमदाबाद (गुजरात)