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२२. प्रमादपरिहार कुलक
इसमें प्रमादपरिहार का दिगदर्शन अच्छा किया है।
मोटे तौर से देखा जाय तो इन कुलकों में आत्म साधना का मार्ग तो बताया गया है तथा आत्मा को उच्चगति मिले वैसा साधना परक मार्ग का सूचन इनमें है । निर्दिष्ट मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को उच्चगति प्राप्त हो सकती है इसमें संदेह नहीं है। मिले हुए इस मा.नवभव में धर्म परायण जीवन बनाकर सरल. हल्का जीवन प्राप्त करे और आत्मानुभूति करने के लिये उद्यम कन्ता रहे जिससे सुखोपलब्धि और उच्च गति प्राप्त हो सकती है- यह कुलकों का स्थूल सार है।
जरा गहराई से देखें तो-इन कुलकों में राग और द्वेष की अनुभूतिओं का फलादेश बताया गया है। अठारह पापस्थानक भी राग और द्वेष की अनुभूतियों का ही विस्तार है । इसमें से चार कषायों को लेकर विचार करें तो क्रोध, मान, माया और लोभ वे भी राग और द्वेष की ही अनुभूतियां हैं।
जैनाचार्यों ने क्रोध और अभिमान को द्वेषात्मक तथा माया और लोभ को रागात्मक अनुभूति बतायी है । नयों की अपेक्षा से विचार करें तो माया, मान और लोभ रागात्मक भी है और द्वेषात्मक भी परन्तु क्रोध केवल द्वेषात्मक ही है।