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१८. सारसमुच्चय कुलक
धर्मकृत्य करने से मानव उत्तम कुल, जाति और धर्म की प्राप्ति करता है इसलिये धर्मकृत्य करने में उद्यत रहना चाहिये ऐसा उपदेश दिया गया है ।
१९. इरियावहि कुलक,
जीव के ५६३ मे और विविध दृष्टियों से उनके भी कई प्रकार बताकर उन सब जीवों के प्रति 'मिच्छामि दुक्कडं' रूप क्षमा मांगवर संसार के दुःखों में से मुक्त हो सकते हैं - ऐसा वर्णन है ।
२०. वैराग्य कुलक
इस जीव ने सेकड़ों भव भ्रमण कर आयें देश, उत्तम कुल, जाति और धर्म पाया है तो धर्म के फल स्वरुप विरति - वैराग्य प्राप्त कर मोक्षगति प्राप्त करें ऐसा उपदेश दिया है ।
२१. वैराग्य रंग कुलक
संसार में सुख नहीं है । स्त्रीओं की चंचलता से भ्रम में पडकर जीवन को बरबाद करना न चाहिये और वैराग्य धारण कर मुक्ति सुख की प्राप्ति करना चाहिये - ऐसा उपदेश दिया है।