________________ (3) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध प्रकार के संघ में उत्तम हैं। इस प्रकार इस संसार में इन तीनों को साक्षात् रत्न के समान जानना चाहिये। . व्याख्याकार अपनी लघुता दिखाते हैं व्याख्याकार कहते हैं कि- मैं मन्दमति, मूर्ख, अज्ञानी, महाजड़ होते हुए भी श्री संघ के समक्ष दक्ष हो कर इस कल्पसूत्र की व्याख्या करने का साहस करता हूँ- व्याख्या करने के लिए तत्पर हुआ हूँ, यह सब श्री सद्गुरु का प्रसाद और चतुर्विध श्री संघ की सान्निध्यता जानना। जैसे अन्य शासन में कहा है कि श्री रामचन्द्रजी की सेना के वानरों ने बड़े-बड़े पाषाण उठा कर समुद्र में डाले। वे पत्थर स्वयं भी तिरे और उन्होंने लोगों को भी तारा। इसे पाषाण का, समुद्र का और वानरों का प्रताप नहीं जानना चाहिये; परन्तु वह प्रताप श्री रामचन्द्रजी का जानना चाहिये। क्योंकि पत्थर का तो ऐसा स्वभाव है कि वह स्वयं भी डूबता है और आश्रय लेने वाले को भी डुबोता वैसे ही मैं भी पत्थर सदृश होते हुए भी श्री कल्पसूत्र की व्याख्या करता हूँ। इसमें मेरा कोई भी गुण नहीं है। इसी प्रकार पौषधशाला या पुस्तक के पन्नों का भी कोई गुण नहीं है। वह गुण मात्र श्री सद्गुरु और श्री संघ का ही है। तथा जैसे कोई भरतशास्त्र की जानकार, गीतकला और नृत्यकला में विशारद, छप्पन्न कोड़ी ताल-भरतशास्त्र में पारंगत नर्तकी होती है, वह गीत-गान करते हुए मृदंग-ध्वनि बजते हुए नृत्य करती है, अनेक चक्रगोले घुमाती है और हावभाव से लोगों का मनोरंजन करती है। इसी प्रकार किसी गाँव की कोई ग्रामीण स्त्री हो, तो वह भी ताल के छंद पड़ते समय नृत्य करती है। तथा जैसे कोई महागंभीर समुद्र हो, उसमें भी लहरें उठती हैं और किसी गाँव का छोटा सा तालाब हो, तो वर्षा ऋतु में पानी से परिपूर्ण होने से उसमें भी लहरें उठती हैं। उसे कोई रोक सकता नहीं है तथा जैसे शुद्ध दूध में अखंड चावल डाल कर खीर बनाते हैं, तब वह भी