________________ / / श्री सद्गुरुभ्यो नमः / / / / ॐ णमो अरहो समणस्स भगवओ महावीरस्स।। जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज संकलित श्री कल्पसूत्र-बालावबोध - हिन्दी ग्रंथरचना का हेतु कहते हैं श्री जिनशासन में सर्व पर्व-शिरोमणि श्री पर्युषण पर्व है। इस पर्व के दिनों में नगर-नगर में कल्पसूत्र पढ़ा जाता है। पर श्री तीर्थकर भगवान ने योगवहन करने वाले साधु-मुनिराजों को ही सूत्र पढ़ने का अधिकार दिया है। अन्य किसी से सूत्र की व्याख्या नहीं हो सकती; इसलिए ऐसे मुनिराजों का आगमन सब जगह नहीं होने से जिस गाँव में साधु-मुनिराज बिराजमान न हों, उस गाँव में रहने वाले श्रावकों को कल्पसूत्र श्रवण में अंतराय होता है। उस अन्तराय को दूर करने के लिए पूर्वाचार्यों ने लोकोपकार के लिए पूर्व में अनेक प्रकरणों की रचना की है तथा वर्तमान काल में भी करते हैं। वे प्रकरण भी सूत्रों के अर्थरूप ही हैं और उनका पठन-पाठन चतुर्विध श्री संघ करता है। वैसे ही मैं भी श्री कल्पसूत्र बालावबोध प्रकरण रूप में बनाता है। जिससे यह ग्रंथ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध श्री संघ को पढ़ने के उपयोग में आ सके। यह बालावबोध भी सूत्र का अर्थ रूप होने से इसे प्रकरण समान समझना चाहिये। श्री पर्युषण पर्व में ग्रंथवाचन की विधि .. जिस ग्राम-नगर में श्री मुनि महाराज चातुर्मास के लिए रहे हों, उस :: गाँव के श्रावक मिल कर साधुजी के पास से सूत्र की पोथी माँग कर किसी श्रावक के घर में रखें और रात्रि-जागरण करें। फिर दूसरे दिन श्रावकश्राविका मिल कर एक बालक को अबोट-शुद्ध वस्त्र पहना कर उसे हाथी पर बिठा कर या अश्वप्रमुख उत्तम वाहन पर बिठा कर वह पोथी एक थाल में रख कर, थाल उस लड़के के हाथ में दे कर सबको श्रीफल, बदाम,