________________ (23) 5. अनिवार्य कारण से प्रथम सुनाने वाला यदि एक-दो दिन पढ़ कर छोड़ दे और उसकी जगह कोई दूसरा पढ़ने बैठे, तो उसे भी ऊपर (चौथी कलम) के अनुसार ही चल कर पढ़ना और सुनाना चाहिये। इससे विपरीत नहीं। 6. सुबह सात बजे से ग्यारह बजे तक और दोपहर एक बजे से साढ़े चार बजे तक का समय कालवेला कहलाता है। इसे छोड़ कर शेष समय: अकालवेला है। इसलिए कल्पसूत्र बालावबोध कालवेला में ही पढ़ कर सुनाना, पर अकालवेला में पढ़ना या सुनाना नहीं। 7. पर्युषण पर्व के दिनों में कल्पसूत्र पढ़ने की यह परिपाटी प्रचलित है कि अमावस्या के दिन पीठिका सहित पहला और दूसरा, एकम के दिन तीसरा और चौथा, दूज के दिन पाँचवाँ और छठा, तीज के दिन सातवा और आठवाँ और चौथ के दिन नौवाँ व्याख्यान पढ़ कर पूर्ण करना। परन्तु उक्त नियम के अनुसार पाँच दिन में पूर्ण न हो सके, तो आठ व्याख्यान तो अवश्य पूर्ण करने ही चाहिये। नौवाँ व्याख्यान पंचमी या षष्ठी के दिन पूर्ण किया जाये, तो भी कुछ हरकत नहीं है। 8. दूसरों को यह ग्रंथ सुनाना न हो और स्वयं अकेले को ही यह ग्रंथ पढ़ना हो, तो भी भक्ति-बहुमान से, पवित्र हो कर, मुख के आगे मुखवस्त्रिका या आड़े पल्ल रख कर तथा अकालवेला टाल कर पढ़ना चाहिये। * 9. इस ग्रंथ की वाचना शुरु करने के बाद अधूरी छोड़ना नहीं, क्योंकि वाचना अधूरी छोड देने से इसके सारासार का पता नहीं लगता.. और यह अमंगल भी होता है। कोई भी ग्रंथ आदि से अन्त तक पढ़ने या सुनने से ही हितकर होता है और उसमें से अनेक बातें सीखने योग्य मिलती ..ॐ शान्तिः! शान्तिः! शान्तिः! - ग्रंथकर्ता