________________ (24) यत्किञ्चित् विश्वपूज्य प्रातःस्मरणीय, परम योगीराज श्रीमज्जैनाचार्य दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने अनेक ग्रंथरनों की रचना कर हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उन परमोपकारी दादा गुरुदेव ने कल्पसूत्र के महत्त्व को जान कर तत्कालीन गुजराती-मारवाड़ी-हिन्दी मिश्रित भाषा में उसका अनुवाद कर सर्वजनहिताय प्रकाशन करवाया था। इसका मूल कारण सामान्यजनों का प्राकृत भाषा का अज्ञान था। प्राकृत भाषा में जो गुरुभक्त कल्पसूत्र को न समझ सके, उसके लिए कल्पसूत्र बालावबोध का प्रकाशन बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ। कालान्तर में इस बालावबोध की माँग बढ़ने पर परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने पुनः प्रकाशन करवाया। तत्पश्चात् इसकी तृतीय आवृत्ति का भी प्रकाशन हुआ एवं चतुर्थ आवृत्ति का प्रकाशन भी हुआ। ___समय के प्रवाह के साथ गुरुभक्तों की ओर से यह माँग प्रस्तुत की जाने लगी कि कल्पसूत्र-बालावबोध का आधुनिक हिन्दी संस्करण प्रकाशित होना चाहिये। गुरुभक्तों की यह माँग समयोचित थी। कार्य श्रमसाध्य और समयसाध्य था। विचारमंथन होता रहा और एक दिन हिन्दी आवृत्ति का कार्य शुरु कर दिया। अन्यान्य कार्यों में व्यस्त होते हुए भी श्री कल्पसूत्र-बालावबोध के आधुनिक हिन्दी रूपान्तरण का कार्य निर्बाध रूप से चलता रहा और कुक्षी वर्षावास समाप्त होते होते यह कार्य समाप्त हो गया। इस हिन्दी रूपान्तरण में और प्रूफ-संशोधन में भाई श्री बसंतीलाल जैन 'बागरावाला' का श्रम सराहनीय ___श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ, कुक्षी जिला धार (म.प्र.) ने इस ग्रंथ के मुद्रण में होने वाले व्यय-भार का वहन कर अपनी गुरुभक्ति का परिचय दिया, एतदर्थ वह साधुवाद का पात्र है। श्री कल्पसूत्र बालावबोध के इस हिन्दी संस्करण का लाभ अधिक से अधिक गुरुभक्त उठायें, इसी मंगलमनीषा के साथ- . गुरुसप्तमी,२०५५ -- आचार्य विजय जयन्तसेनसूरि कुक्षी. जिला धार (म.प्र.). . . 25.12.1998 .