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साधु की हठ फकीर को लेकर यह हम लोगों ने क्या कर डाला है ? हमने क्या, मैंने किया है। उस फकीर के बहाने को लेकर मैंने जैसे स्त्री को धक्का देकर दूर कर दिया है और अब उस दूरी को खुद लाँघ कर उसके पास पहुँचने का मैं साहस नहीं कर रहा हूँ। वह साधु हम लोगों के जीवन में गड़बड़ और कलह डालने न जाने किस बुरी सायत में चला आया कि अब पीछा नहीं छोड़ता । कल पायेगा, तो मैं बाहर-ही-बाहर समझाकर या तो, नहीं तो दुरुस्त करके वापस कर दूंगा, और लौटकर अपने गृहस्थ-जीवन के शान्त तल पर जो विक्षुब्धता पा उठी है, और जो सलवटें पड़ गई हैं, माफी माँग कर या जैसे होगा, उन्हें ठीक कर दूंगा।
यह सोचकर उन्होंने कुछ स्थिरता पाई ।
अगले दिन प्रतीक्षा में रहे। वह आता दीखा, तो आगे बढ़ रास्ते में ही उसे मिले, “कहाँ जाते हो ?"
"तुम्हारे पास आता था..."
"मैं यह हूँ। मुझसे तुम्हारा कोई काम नहीं । मैं कहता हूँ, लौट जाओ।" ___ "भीख लेने आता था । भीख नहीं देते, कहते हो लौट जाओ, तो लौट जाता हूँ।"
इतना कहकर वह लौटने को हुआ। "अच्छा , ठहरो..." वह ठहर गया । उन्होंने पूछा, "कल तैंने भीख कहाँ पाई ?" "तुम तो थे नहीं घर पर, किससे पाता ?" "मुझसे ही लोगे?" "और किसी से कैसे ले सकता हूँ ?"