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जैनेन्द्र की कहानियाँ [छठा भाग] जा सकता है । यहाँ वहाँ से भी ज्यादा सुविधाएँ हैं। उन देशों में ही जाकर हिन्दुस्तान की इस सम्बन्ध की परिस्थिति का अध्ययन किया। ताजे नये वैज्ञानिक तरीके उपयोग में लाये जायें, तो यहाँ गो-वंश खूब बढ़ाया और उन्नत किया जा सकता है। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । भारत कृषि-प्रधान देश है। गोवंश पर उसका आधार है। इसलिए गो-सेवा के प्रश्न में ही उसका लाभ है । भारत की स्वतन्त्रता भी उसी प्रश्न में संश्लिष्ट है । खेद है कि नेता इस ओर ठीक ध्यान नहीं देते । उनका यही काम होगा कि इस प्रश्न के महत्त्व को प्रकट करें। वे एक गोशाला ( डेयरी) खोलने जा रहे हैं । बिलकुल आधुनिक तरीके पर । उससे दूध शुद्ध मिलेगा, और गो-वंश की रक्षा और उन्नति के सब उपाय काम में लाये जायेंगे। गो-वंश कैसा क्षीण होता जा रहा है, और भारत सो रहा है, धिक्कार है !
इससबका आशय समझ मैंने आश्वासन दे दिया, "डेयरी खोलिए । सेर-मर दूध रोज तो मैं ले लिया करूँगा, अपने मित्रों से भी कहूँगा।"
उन्होंने भी देखा, उनका निष्काम लेक्चर व्यर्थ नहीं गया।
तब और और बातें हुई। अभी, १५-२० दिन हुए, ही लौटे हैं। बड़ा खर्च पड़ता है। पाँच साल में १२ हजार । परदेश बड़े अच्छे हैं, जी होता था, वहीं रहने लगूं। भारत का ऋण है । उसे चुकाना होगा। भारत को खींच कर उसी पुराने गो-सेवा के लक्ष्य पर लाना होगा । पहले.......
फिर वही लेक्चर था जिसे मैंने बड़े धीरज से बर्दाश्त किया। घर के पास आया तब बोले....
"अच्छा ..." मैंने भी कहा, "अच्छा।" "भाई, कभी-कभी मिल लिया करो।"