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व' गंवार
२१३. आदमी अच्छा-बुरा नहीं है, आदमी आदमी है। - आदमी को प्यार करो, बुराई का पातक दानव के माथे डालो । — जानते हो महाचार का पैमाना लेकर, झट नाप-तोल कर, आदमियों पर अच्छे-बुरे का लेबिल चिपका देकर काम चलाने की बान डाल लेने का क्या परिणाम हुआ ? - हम में विषमता फूट उठी है, हमारे बीच में से प्रेम उठ गया है । जानते हो, एक को सदाचारी कहकर उसे सामाजिक सम्मान दे उठने, और दूसरे को दुराचारी कहकर उसे जेल में ठूंस देने को उद्यत रहने का क्या परिणाम हुआ है ? - समस्याएँ बढ़ी हैं और हम हीन रह गये हैं ।"
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विनोद बोलता रहा । और किसी को बीच में कुछ कहने का अवकाश जैसे उसने- नहीं दिया
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"और जानते हो, क्या परिणाम हुआ है ? लोग लेबिल पर जाते हैं । जिसको सदाचारी समझ लिया जाता है, वह अपने को दुराचारी समझना छोड़ देता है । हम उसे यह समझने में मदद देते हैं, और फलतः वह दम्भी बनता है । इस तरह आज देखते हैं कि जो भद्र माने जाते हैं उसी श्रेणी के लोगों में, वस्तुतः, अच्छे बनने की चिन्ता की सबसे अधिक जरूरत है। उनके हाथ में शासन-दण्ड है, समाज- दण्ड है, मानो, वह अब शैतान बन जायँ तो भी सज्जन हैं । दम्भ उन में जम कर है । जहाँ श्रात्मनिरीक्षण की वृत्ति होनी चाहिए वहाँ पसर-कर आलोचना बैठी है ।... हम जो यहाँ हैं, सम्भ्रान्त हैं। मैं कहता हूँ, हम तनिक भी सम्भ्रान्त नहीं हैं । हम बस कठिन हैं । आँसू हमारे पास कम हैं, हृदय हमारा परुष है, अनुभूतिहीन हो सका है, सो ही हम पैसेवाले, संस्कृति, शिक्षा और सभ्यतावाले भले लोग हैं। वह दिन आये कि हमारी धारणा ढीली हो कि हम सभ्य, शिक्षित, संस्कृत, सम्माननीय हैं। तब हम सहसा ही देख उठेंगे, हम कैसे अधम, निम्न हैं । उनसे बुरे हैं जिन्हें हम बुरा समझते हैं। ..."