Book Title: Jainendra Kahani 06
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 236
________________ व' गवार २२७ सकी। इसने उसे बुरा-भला कहकर, धक्का देकर भीतर कर दिया। फिर सामने इकट्ठ लोगों को ललकार कर, डरा-धमका कर, अलहदा किया। लोग बुरी-भली कहते-सुनते राह लगे। उसके बाद इसने घर के भीतर पहुँचकर कहा, "कुलच्छनी, तुझे या नहीं है। ऐसा हियाव तेरा कि खुले चौंतरे मदों से रार करती है !" पुनिया घुघट में थी। उसी में बन्द , चुप रही। इसने कहा, "अबकी कुछ हुआ, काला मुह करके गाँव से बाहर करवा दूंगा, जो कुछ समझती है। नहीं तो, आबरू से रह ।" वह अपने माथे की चोट को लेकर अलग बैठ रही। धरती को चोट देकर पैर पटकता हुआ यह श्रादमी अपने घर आ गया। लेकिन लोगों में चर्चा फैली, आलोचना हुई। और मौका पाकर वे फिर पुनिया के द्वार इकठ्ठ हो गये, और इसी आदमी का नाम ले-लेकर भाँति-भाँति के व्यंग-बाण भीतर फेंकने लगे। ___ मालूम करके यह आदमी तुरन्त वहाँ पहुँचा। एकत्रित समूह को सम्बोधन कर बोला, “बेहयाओ, तुम मर्द नहीं हो, जानवर हो। हटो, पुनिया मेरे यहाँ रहेगी। फिर देखें, कौन क्या कहता है ? चलो, उठो।" पुनिया नहीं उठी, चूँघट में बैठी रही। वह रोती थी। "उठती है ?" वह नहीं उठी। झटक कर उसका हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा"चल, उठ । अभी चल, कम्बख्त ! नहीं चलती ?"

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