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व' गंवार
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हुई । लेकिन, जिसकी झाँकी हम ले चुके हैं, उस तुम्हारी कहानी को हम तुमसे वसूल करके छोड़ेंगे।"
मित्र ने कहा, "अच्छे-बुरे की बात तुम्हारी सब फिजूल है। हमें वैसी बातें नहीं चाहिएँ। उनके लिए हम किताबें पड़ लेंगे। तुमसे कुछ किताबों से ताजा चीज, हलकी चीज, तबीयत की चीज़ चाहते हैं। ऐसी बातों को हटा दो तो तुम्हारी कहानी खरा सोना हो जाय, खरा सोना । इस तरह की इधर-उधर को बेमतलब बातों से तुम्हें उसे मट्टी बना देने की जाने क्या आदत पड़ गई है !"
विनोद ने कहा, "खरा सोना तुम चाहते हो ? अच्छा लगेगा, पचेगा नहीं । पर, शायद तुम्हें पचने की फिक्र नहीं।"
मैंने कहा, "अपनी बीती सुनाओगे ? कहो, सुनाओगे?"
विनोद, “विद्याधर को सुनाऊँगा। विद्याधर बनो, बब सुनाऊँगा । पर तब कहोगे नहीं, सुनाओ।"
सबने कहा, "देख लेना, हम सुनेंगे।"