Book Title: Jainendra Kahani 06
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 210
________________ हत्या १६६ हैं कि वे उनके आधार उनके साथ ही हैं, नीचे से कहीं खिसक तो नहीं गये! ___ बज्जी के चले जाने के अनन्तर भी खासी देर तक मित्र घोड़ी को लेकर उत्साहशील रहे । अन्यथा वह मन्द और शिथिल ही देखने में आते हैं। :२: रात को खूब बारिश हुई । खपरैल पर बौछार तड़तड़ करती पड़ती । बादल गड़गड़ाता । बिजली मुँह चमकाती, और भाग जाती । अपने पुनर्जागृत तारुण्य को हिलोर में हमें यह बहुत अच्छा लगा । जान पड़ा, सब-कुछ हम दोनों के लिए विमोह का सामान प्रस्तुत करने में लगा है। घना अँधेरा और विपुल कोलाहल उपस्थित करके मानो प्रकृति हमें कानोंकान कह रही है, “तुम दो हो, और तुम तरुण हो । बाहर दुनिया और कहीं नहीं है। सबको खो दो । बस, एक-दूसरे में रहो, एक-दूसरे में । तुम्हों दो हो, जो एक हो, शेष और कुछ नहीं है।" हम मग्न थे। लेकिन, हमें क्या मालूम था, बाहर वही प्रकृति क्या कुछ नहीं कर सकती थी। सबेरे तक बूंदाबांदी धीमी हो गई थी। वह भी जैसे रुकने की प्रतीक्षा में थी। श्री सोई पड़ी थीं। मैंने कहा, "उठो । घोड़े पर बैठकर घूमने जाना है कि नहीं ?" उनके उठने में शीघ्रता नहीं हो सकी। लेकिन उठ ही गई, तब जान पड़ा, घोड़ी के आने की पल-पल देर अब उन्हें असह्य है । पूरी तरह तैयार नहीं हुई कि पूछा, "बज्जी लाया घोड़ी ? मैंने कहा, "लाता होगा। . बोली, "अच्छा लाता होगा! क्यों नहीं उसे अपने काम का खयाल रहता?"

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