Book Title: Jainendra Kahani 06
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 218
________________ हत्या मैं-"आपको नहीं मिले ?" स०-"नहीं, मुझे नहीं मिले। कब तक, श्राप 'समझते हैं, वह लौटेंगे?" ____ मैं, "क्या कह सकता हूँ ! अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था।" ___स०-"देखिये, मुझे जल्दी वापस पहुँचना है। पिछला एक घण्टा मुझे उनके पाने में खोना पड़ा है। उनको इस तरह अपने जानवर के बारे में लापर्वाह नहीं हो जाना चाहिए। मेरा उससे वास्ता नहीं है। लेकिन, मैं रात को सोना चाहता हूँ। मुझे नहीं पसन्द कि मेरा दिल मेरी नींद हराम करे । जानवर कैसे उस हालत में छोड़ा जा सकता है ?....वह कब आएँगे ?" ___मैं-"आप तशरीफ रखिये । शायद लौटते ही हों।" __ स०-"क्या मुझे रहना होगा? लेकिन, मेरा बड़ा हर्ज हो रहा है। आध घण्टे से ज्यादा देना, लेकिन, नामुमकिन है।...आप उनके मित्र हैं ?" मैं-"अतिथि ।" स०-"आप क्या उनकी तरफ से मुझे इजाजत नहीं दे सकते ?" ___मैं-"शायद दे भी सकता। लेकिन, उनके सेन्टिमेन्ट्स का मुझे खयाल है।" स०-"Sentiments !" मैं-"यह जानवर बीस-बरस से उनके पास है। जानते हैं, उनका क्या उसके साथ वास्ता है ? अपने हाथों कब्र खोद कर उसे गाड़ना आसान नहीं है।" स०-"(विनीत भाव से) मैं समझता हूँ । मैं समझ सकता हूँ। पर, इसी से मेरी बात और भी मानी जानी चाहिए।"

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