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चोरी.
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उसने पाँच रुपये दिये स्वीकार कर लिये गये। वह चला गया।
ऐसे कितने दिन गुज़ारे पता नहीं। महीने-भर बाद लकवृ चोरी के अपराध में पकड़ा गया। रात के समय बाग से उसने कुछ आम तोड़े थे । अाम ले जाने की तैयारी में था कि मालिकों ने उसे घेर लिया और पकड़ लिया। वह एक बार घर जाने की इजाजत चाहता था । कहता था, मैं खुद आ जाऊँगा, नहीं तो एक आदमी साथ चले। लेकिन उन्होंने न माना। लक्खू इस पर जबर्दस्ती अपने को छुटा, उनकी पकड़ में से भाग निकला । घर पर माँ बहुत अशक्त थी। बुड्ढा शरीर भूख कब तक बर्दाश्त कर सकता था ? दिन-भर घूम-फिरकर भी जब कुछ न मिला, तो बाग के पास जाते हुए आम देखकर लक्खू को खयाल हो आया कि इसी से माँ को कुछ सहारा मिले। रात उन्हीं आमों को वह लेने गया था। खाली-हाथ जब वह माँ के पास लौटा, तो नहीं जानता था, वह खुशी मनाये या अफसोस ! आम तो ला नहीं सका, पर खुद तो माँ के पास आ गया। ___ सबेरा होते ही सिपाही के साथ माली शिवाले पर मौजूद हो गया।
रोने-धोने की, पाप-पुण्य की कौन सुनता है। लक्खू को सिपाही की हथकड़ी में बँधकर साथ चलना पड़ा। ____मजिस्ट्रेट के सामने चोरी का अपराध था। यह अपराध खुद तो कुछ बहुत बड़ा न था, पर उसके इस प्रश्न का कोई सन्तोषप्रद उत्तर न दे सकने पर कि उसकी कमाई का जरिया क्या है, जरासी चोरी का अपराध गुरुतम हो गया। वह कहता था, "जी, मैं कुछ नहीं करता, भूखा रहता हूँ। कुछ दाने-बाने मिल गये, पैसे मिल गये, या मजदूरी से जो आ गया, उसी से खाने को ले लेता हूँ।" लेकिन यह भी कोई जवाब है ! मजिस्ट्रट साहब ने सीधा दो साल का हुक्म सुना दिया !