________________
१७८
जैनेन्द्र की कहानियाँ [छठा भाग]
दो साल तक घर वालों का क्या हुश्रा, किसको खबर ? हाँ, अगर धनञ्जयसिंह-धन्नू ने उनकी खबर न ली होगी, तो परमात्मा ने अवश्य ली होगी, इसमें संशय नहीं है। __लक्खू महाशय जब जेल से निकले, तो सीधे-सादे भोले-भाले दीन लक्खू नहीं निकले । वह पक्के, छटे हुए, उस्ताद चोर निकले। लेकिन यह मानना होगा कि धनञ्जयसिंह की शिक्षा में और जेल की शिक्षा में महासागरों का अन्तर था। धनञ्जयसिंह का कृत्य, हो सकता है, विकृत तके और बुद्धिविपर्यय का परिणाम हो, किन्तु उसमें सिद्धान्तों का, दया का समावेश अवश्य था। इधर लक्खू महाशय की चोरी कुटिल शुद्ध स्वार्थ का परिणाम थी-एक लत थी, व्यसन थी। लेकिन इतना अवश्य है कि लक्खू पहले जैसी कठिनता में नहीं है, और चैन से दिन बिताता है।