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सजा
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मालूम हुआ कि पर्स में चार दस-दस के नोट हैं, दो सिक्के के रुपये, कुछ रेजगारी, दो जरूरी खत, और एक पता।। ___मैंने अपने यहाँ के सुरजना को बुलाकर पर्स के बारे में पूछा। वह सुनकर अचरज में रह गया और कुछ न बता सका । मैंने ताकीद देकर कहा कि जाओ, तलाश करो। नहीं तो तुम ही जानोगे। घर में दूसरा कोन है कि उसको कहा जाय !
सुरजना ने अपने को निर्दोष बतलाया। लेकिन मेरी डपट के आगे वह ज्यादा मुंह नहीं खोल सका और चला गया। ___ श्रीमती जी ने पूछताछ करनी शुरू की कि सिक्के किस बादशाह के थे और किस सन् के थे ? और दस के नोटों में कोई बड़ा था या सब छोटे थे ? और किस जेब में क्या ? और
मैंने कहा, “पूछ-पूछकर अपना जी ही भरोगी कि कुछ करतब भी करोगी? देखो पड़ोस के जो किराएदार हैं वहाँ से कुछ पता लगाओ। सुना ?"
· पहले तो श्रीमती जी कुछ गर्म-सा जवाब देने पर उतारू दीखीं। मानो उन्होंने कहना चाहा कि मैं ही सब कर-धर के रखू तो कुछ हो, यह नहीं कि और भी कोई कुछ पैर-हाथ हिलाए । क्यों न, आदमी बड़े जो ठहरे ! लेकिन यह सब कहें इससे पहले ही आकस्मिक-भाव से चमककर बोलीं कि गये रुपये कहीं भला मिलते हैं ? लेकिन एक बात पक्की हो जानी चाहिए, मैं हूँढकर दूं तो मुझे क्या इनाम मिलेगा ?
अय्यर अब तक स्थिर-चित्त हो गए थे। जो गया सो गया, उस पर समय को और अपनी शान्ति को भी क्यों जाने दिया जाय । लेकिन श्रीमती जी की इनाम की बात सुनकर बोले, "भाभी क्यों दिक करती हो ? लाओ पर्स दे दो न ।”
श्रीमती बोली, "तो मैं चोर हूँ, कि मैंने पर्स उठाकर रख लिया है ?"