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सज़ा
१६३
अय्यर ने वापिस बटुआ उन्हीं के आगे कर दिया।"
श्रीमती हँसकर बोली, "इस मरे चमड़े का मैं क्या करूँगी ?" कह कर चारों नोट ओर दो रुपये निकालकर बाकी बटुआ उन्हीं को लौटा दिया। ____मैंने कहा, "मिनी ! तुम्हें शर्म आनी चाहिए। उस बेचारी को तुम कैसे मार सकी ? कौन जानता है कि किस बेबसी में उसने यह काम किया होगा!" ____ श्रीमतीजी ने हँसकर कहा, "मैं जानती हूँ। विधवा के भी बेटा हो सकता है और उसका लड़का दूर एक स्कूल में पढ़ता है। सातवीं से अब आठवीं की पढ़ाई करेगा। उसके लिए बेचारी को कुछ चाहिए था...पर चोरी तो चोरी ही है।" ___ इसके बाद हम दोनों समझ गए कि श्रीमती के इनाम के ४२) रुपये उस दूर के लड़के की आठवीं की पढ़ाई के काम में श्राएँगे। फिर भी मैंने साहस करके पूछा, “मिसरानी कहाँ है ?" __ श्रीमतीजी ने गुस्से में कहा, “कम्बख्त अभी मरी नहीं है, सिसक रही है।"