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चोरी
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ईमान क्या है यह भी तो समझो । ब्राह्मण कहता है-ईमान पर कायम रहो, मुझे पैसा चढ़ाओ । राजा कहता है-ईमान पर कायम रहो, टैक्स दो और हमारा हुक्म मानो । बनिया कहता है-ईमान पर कायम रहो, सूद चुकाते रहो। और सब कहते हैं-ईमान पर कायम रहो, तुम गरीब हो, गरीब ही बने रहो; नीच हो, उसी में सन्तोष रक्खो, कभी सिर न उठाओ, यही तुम्हारा ईमान है। अब हम क्या कहते हैं ? हमने भी उन्हीं की बातें अपने सिर में ठूस ली हैं । हम भी कहते हैं-अच्छा मालिक, हम कुछ न कहेंगे ईमान पर कायम रहेंगे। हम समझते हैं, हम जानवर हैं, वे प्रभु हैं। यह तुम्हारी ईमानदारी है, जिसने हमें यह सिखाया है। नहीं। हम कहेंगे-ईमान पर हम क़ायम हे, तुम्हारे पास धन बहुत है, उसमें हमारा हिस्सा है, हमें दो। नहीं तो हम ले लेंगे ! कहेंगेईमान पर कायम रहो, चुपचाप धन हमें दे दो। नहीं तो हम छीन लेंगे। एक दफे हमने समझ लिया कि इसमें बेईमानी नहीं है, तो बेईमानी नहीं रहती।" ___ लक्खू ने कहा, "मेरी तो समझ में तुम्हारी बात आई नहीं। मुझे तो डर लगता है।"
धन्नू ने कहा, "डर ! इस डर ही की तो सारी गड़बड़ है। अपनी ईमानदारी को मनवाने के लिए उन्होंने कैसे बड़े-बड़े डर के भूत खड़े कर दिये हैं-अदालत, हवालात, जेल, फाँसी ! लेकिन 'भई, जो नहीं डरता, उसके लिए ये भूत कुछ नहीं हैं। जब हम
अपनी बात लेकर उठे हैं, तो इस डर को तो हटा देना होगा। उल्टे हमें अपने डर के साधन खड़े करने होंगे। अगर वह सीधी तरह हमारी बनाई ईमानदारी कबूल नहीं करेंगे, तो हम अपने साधनों को सामने करके कहेंगे-मानो, नहीं तो ये देखो, लूट, चोरी, डकैती, क्रान्ति ......"
लक्खू ने बीच ही में रोक कर कहा, “धन्नू भाई, यह तुम क्या