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कः पन्या
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प्रति जैसे वह किसी प्रकार निश्चिन्त नहीं हो पाता है । मानो स्वर्गराज्य में उसी के प्रवेश अथवा अप्रवेश का प्रश्न है।
मेरे मन में उस बालक के प्रति करुणा हुई। मैंने पूछा, "तुम्हारे प्रश्न का क्या आशय है ?"
उसने उसी शुद्ध और प्रभावोत्पादक स्वर में कहा, “यही कि मैं जानना चाहता हूँ कि इंजील की इस वाणी का क्या वही अभिप्राय है, जो उसके शब्दों का अर्थ होता है ?" ___ हमारी बातें अँगरेजी में हो रही थीं। मैंने हिन्दी में कहा, "मेरे भाई, उस वाक्य से क्या तुम्हें यह अनिवार्य रूप से स्मरण हो पाता है कि तुम धनशाली हो ? क्या मैं पूछ सकता हूँ कि यह गाड़ी तुम्हारी है ?" ___“जी हाँ, यह गाड़ी मुझे अपनी ही कहनी होगी। मेरे मन को शान्ति नहीं है । इंजील का वह कथन मुझे अपने लिए अभिशाप मालूम होता है; किन्तु, मुझे सन्देह है कि उस जैसे पवित्र ग्रन्थ में किसी श्रद्धालु के लिए शाप हो सकता है। मैं जानना चाहता हूँ कि तब क्या वह वाक्य ज्यों-का-त्यों सत्य नहीं है ?"
मैने फिर सच्चिंता-पूर्वक लालचन्द के मुख की ओर देखा। देखा, मानो वह त्रस्त है। कुछ बोझ उसे बराबर दबा रहा है।
"क्या आप कहेंगे कि उसका अर्थ साधारण शब्दार्थ से कुछ भिन्न है ?"
मैंने पूछा, "तुम ईसाई तो नहीं हो न?" "नहीं।" "तब कौन धर्मावलम्बी हो ?"
"मैं जैन हूँ । इससे आप असन्तुष्ट तो नहीं हैं कि मैं जैन हूँ ?"
मैंने कहा, "मेरे भाई, कैसी बात तुम कहते हो; लेकिन जैन होकर तुम को बाइबिल का एक वाक्यांश क्यों इस प्रकार सताता