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कश्मीर-प्रवास के दो अनुभव
सन् १६२७ की बात है । तब राजनीतिक वातावरण में कर्मण्यता और प्रचण्डता वैसी नहीं थी। गाँधी की बात को गले से उतार कर उस समय यह भारत देश अलस-निमग्न भाव से, चुपचाप पचाने की क्रिया कर रहा था।
राजनीति-ग्रस्त व्यक्तियों को अपने जीवन के और पहलुओं को सँवारने और सँभालने का उस समय अच्छा सुयोग प्राप्त हो गया। कुछ ने उस सुयोग से, अपनी चतुराई के बल पर प्रचुर लाभ उठा लिया । वे अपने को कुछ बनाकर बैठे रहे-चाहे लौट कर फिर राजनीति में ही बैठे हों, या इधर-उधर हटकर समाजनीति में, 'बार' में, व्यवसाय में या सरकार की किसी कुर्सी में बैठे हों ! और जो चूके, सो चूके। ____ महात्मा...जी को तब एक प्रयोग की सूझी। सूझी तो पहले
भी होगी; पर रह-रह गई होगी। सन्' १० में उनके जीवन के विकास-क्रम को एक विशिष्ट दिशा मिली । सन्' १८ तक अव्याबाध गति से वह उसी दिशा पर उन्नत होता रहा । धार्मिक चेतना में से वह विकास उद्भूत हुआ था । त्यागमय उसका रूप था, आध्या
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