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जैनेन्द्र की कहानियाँ [छठा भाग ]
पीछे ही रहते हैं । यहाँ के मशहूर....जौहरी आपके पिता हैं । श्राप हमारे क्लब के खजांची हैं, मिस्टर लालचन्द जौहरी ।" “मैं बहुत खुश हूँ ।"
मैंने कहा, लालचन्द अभिवादन में तनिक झुका । मेरे साथ आते हुए मन्त्री से उसने शुद्ध अँगरेजी में कहा, "ओह, तुम कष्ट न करो । आपको मैं ही स्थान पर पहुँचा दूँगा ।"
मैं मोटर में बैठा और मेरे पीछे आकर लालचन्द मेरे बराबर बैठ गया । गाड़ी रोल्स-रॉयल थी और जिस स्वाभाविकता के साथ उसने शोफर को अमुक ओर चलने के लिए कहा, उससे स्पष्ट था कि लालचन्द गाड़ी का मालिक है ।
गाड़ी चली और कुछ देर लालचन्द चुप बैठा रहा । मुझे प्रतीत हो रहा था कि चुप ही बैठे रहने के लिए शायद उसने मन्त्री को कष्ट न करने का परामर्श नहीं दिया है । वह कुछ कहना चाहता है; लेकिन कदाचित् उसे राह नहीं सूझ रही है ।
तब मैंने कहा, "तो आप जौहरी हैं । जवाहरात का काम भी करते हैं ?"
" जी हाँ, कुछ करता भी हूँ । मुझे लोगों ने यों ही क्लब का स्वजांची चुन लिया है ।" स्पष्ट अँगरेजी में उसने कहा, और कहता रहा, “आपकी वक्तृता से मैं बहुत प्रभावित हुआ। मेरी बातों के लिए क्या आप मुझे क्षमा करेंगे ? आपने भाषण में इंजील के उस वाक्य को दोहराया था, जिसमें लिखा है कि हाथी का सुई के छेद से निकलना आसान हो सकता है; पर धन वाले के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश पाना उससे भी कठिन है। मैं जानना चाहता हूँ कि क्या वह ठीक है ?"
के बालक युवक की ओर देखा । दिखाई दिया, उसके मुख पर जिज्ञासा है। वह जैसे कृपा का प्रार्थी है । मानो वह अभी कातर हो आयगा । इंजील के इस वाक्य के