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मित्र विद्याधर
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आवश्यकता से, मुझे, उसकी उपस्थिति में, मुक्ति मिल जाती है। कारण यही, कि ये सब चीजें उस क्लर्क विद्याधर की निगाह से नीचे रह जाती हैं । उसे दीखती नहीं, सो नहीं; पर अपने में उस निगाह को उलझा नहीं सकतीं; उसमें किसी तरह का विकार नहीं
ला सकतीं। ___ जो अपने कारण, सब की निगाह में क्लर्क से भी गया-बीता है, और अपनी डिग्रियों के कारण केवल जो सभा का उपमन्त्री है, उसी छोटे आदमी विद्याधर के सामने मैं पहुँचता हूँ, तो अपने बड़प्पन को अलग उतार कर पहुँचता हूँ। और मन में यह अनुभव कर प्रसन्नता हो पाता हूँ कि मैं उसकी तुलना में अोछा रह जाता हूँ। ___ मुझे कभी-कभी खेद होता है कि क्यों यह मेरा मित्र विद्याधर वहाँ है, जहाँ है । क्यों मुझे, उसे समाज में उसके योग्य स्थान पर पहुँचाने नहीं देता । पर मैं उसे इतनी-सी छोटी बात समझाने में असमर्थ हो जाता हूँ, कि गली का झम्मन भँगी सम्राट् जार्ज से छोटा है । मैं बहुत करता हूँ, तो वह तनिक हँस पड़ता है। वह कम्बख्त क्यों नहीं समझता कि दुनिया में छोठा-बड़ा है, है, एक से लाख बार है और हमेशा रहेगा, और उसे बड़ा बनना ही चाहिए, छोटा नहीं रहना चाहिए। और मुझे खीझ होती है कि मैं क्यों नहीं उसे बड़ा बनने को राजी कर सकता। और जब वह छोटा है, तो मैं ही क्यों दुनिया में बड़ा बना खड़ा हूँ ? ऐसे समय वह कहता है, छोटा बड़ा नहीं है । पर, एक-सा भी नहीं है। सब अपनी-अपनी जगह हैं। और उनकी जगह वही है, जो है। सब, कुछ और होना चाहते हैं। जो होना चाहते हैं, उसे बड़ा माना। इसीलिये जो हैं, वह छोटा हो गया। मन के भीतर का यही छुटबड़प्पन जग का राज-रोग है। मन में से इस कीड़े को निकालना