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प्रियव्रत
उसने कहा, "नहीं, विद्याधर, मेरा जी किसी काम को नहीं करता । जग से विरक्ति मालूम होती है।"
मैंने कहा, 'प्रियव्रत, तुम उस कम्पनी में थे न ? क्या उससे अब सम्बन्ध नहीं है ?"
प्रियव्रत ने पूछा कि कम्पनी क्या ? मैंने सुझाया कि उस फिल्म कम्पनी में थे न !
प्रियव्रत की भौंह सिकुड़ आई। उसने कहा कि हाँ......श्रा, पर वह बात पहले जन्म की है और अब दो वर्ष से वह खाली है। ऐसा खाली कि.....। और पिछले चार महीनों से उसकी पत्नी अपने पिता के घर है जहाँ कि उसकी विमाता नहीं चाहती कि वह रहे। ____ मैंने कहा कि प्रियव्रत, ऐसी हालत में तो तुम्हें और मनोयोग से लिखना शुरू कर देना चाहिए।
प्रियव्रत ने माथे में बल लाकर कहा कि ऐसी हालत में ? क्या तुम्हारा मतलब है कि पैसे के लिए मुझे लिखना चाहिए ? पैसे के लिए मैं जूता तक साफ नहीं कर सकता। लिख तो सकता ही कैसे हूँ। नीच-से-नीच काम पैसे के लिए मुझ से न होगा । उस पैसे के निमित्त लिखने जैसा काम करने को मुझसे कहते हो ? सुनकर मेरा जी जल उठता है।
मैंने पूछा कि फिर क्या करोगे?
प्रियव्रत की आँखों में कुछ निश्चित नहीं मालूम होता था। लेकिन वाणी पर्याप्त से अधिक कटिबद्ध प्रतीत हुई। उसने कहा कि करना मुझे क्या है। जो करते हैं वे खाक करते हैं। मैं अपने में मग्न रहने के लिए हूँ। अपने से बाहर का मुझे कुछ नहीं चाहिए । भीतर क्या नहीं है ? बाहर की बड़ी-से-बड़ी चीज के पास ताकत नहीं है कि मेरा छोटे-से-छोटा दुःख अपने पास रोक सके। दुःख है तो मुझ में है। सुख है तो मुझ में है। मैं नहीं