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प्रियव्रत
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मैंने कहा, "सहायक शुरू में पचास पाते थे । लेकिन वेतन " - प्रियव्रत कह उठा, “पचास !"
मैंने कहा, “दिन एक से नहीं रहते, प्रियव्रत । पचास का मुँह मत देखो। तुम्हारी योग्यता छिप नहीं सकती। बस एक बेर चित्त थिर कर लो। बाकी भाग्य देख लेगा ।"
प्रियव्रत ने व्यंग से कहा, "मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ, विद्याधर !"
मुझे सुनकर पीड़ा हुई। फिर भी मैंने अनुरोध पूर्वक कहा कि भविष्य को कोई नहीं जानता। इससे वर्तमान की मर्यादा पर लज्जित होने की कोई बात नहीं है, प्रियव्रत !
लेकिन प्रियव्रत ने कहा, “मैं पचास की नौकरी नहीं कर सकता। और न किसी का सहायक हो सकता हूँ। भूखों मरना पड़े तो इतिहास लिखेगा तो कि प्रियव्रत जैसे कवि को दुनिया ने भूखा रक्खा और उसी में जान ले ली ! ग़रीबी इस तरह मुझे अभाग्य नहीं मालूम होती । लेकिन पचास में सहायक - संपादकी मुझसे न होगी ।"
मैंने कहा कि पचास रुपए थोड़े हैं, यही बात है न ? लेकिन न कुछ से तो कुछ भला है। इसे स्वीकार कर लो, प्रियव्रत ! आगे, विश्वास मानो, सब ठीक हो जायगा ।
लेकिन प्रियव्रत को वह बात नहीं भाई । उसे वह अपमानजनक मालूम हुआ । थोड़ी देर बाद किंचित् रुष्टभाव से प्रियत्रत मुझसे विदा ले चला गया ।
: २ :
मुझे नहीं मालूम था कि इस दिल्ली शहर में वह कहाँ टिका है । मैंने उसका स्थान पूछा था । उसने कहा था कि अभी स्थान और स्थिति जैसी कोई चीज उसके पास नहीं है । जहाँ-तहाँ ठहर