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जैनेन्द्र की कहानियाँ [छटा भाग] आप क्यों फिजूल डाक्टर पर पैसे बरबाद कर रहे हैं ? सब बन्द कर दीजिए । उन्हें जीना हो तब न ?
मैंने कहा कि यह क्या कहती हो ? डाक्टर तो पाराम बतलाता है। कहता है, हालत सुधर रही है और कुछ दिन में स्वास्थ्य लौट आयगा।
उन्होंने व्यङ्ग से कहा कि हाँ, लौट आया स्वास्थ्य ! डाक्टर कुछ जानता भी है ? हम आप से एक पैसा नहीं ले सकते ।
मैं सुनकर 'घबरा-सा गया। मैने कहा, "क्यों, क्यों क्या बात है ?"
दया ने विचित्र स्वर में कहा कि आप एक काम कर सकें तो कर दीजिए । बचनी हुई तो उतने से ही उनकी जान बच जायगी। नहीं तो कोई डाक्टर कुछ नहीं कर सकता।
मैं दया का श्राशय कुछ भी नहीं समझ सका था।
उसने कहा कि आप को मालूम भी है कि आपका दिया पैसा किस काम आता है ?
मैं पहले तो चुप रहा । फिर मानो अनुनय के स्वर में मैंने कहा कि उन सब की चिन्ता करके मुझे आप कष्ट क्यों देती हैं।
वह बोली, "शराब खरीदी जाती है।" अनायास मेरे मुंह से निकला, "शराब !"
दया ने जाने कैसे मुझे देखकर कहा, "हाँ, मैं ही खरीद कर लाती हूँ। वह कहते हैं कि शराव से वे जी भी रहे हैं। नहीं तो कभी के मर जाते। मैं जानती हूँ, यह झूठ है । जानती हूँ, शराब उन्हें खा रही है, पर मुझसे यह भी तो नहीं बनता कि उनकी हालत देखती रहूँ और शराब से जो जरा चैन उन्हें मिलता है, उसे भी छीन लूँ । मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, उनकी शराब छुड़वा दीजिए। नहीं तो डाक्टरी बिरथा है। और मैं आप से माफी