________________
मित्र विद्याधर
"मैं जी, स्यामीजी के दिरशनों को आया था । रोत्तक के पास
रैता हूँ, जी । स्यामीजी म्हारे गाम आए थे - "
"अच्छा, कौन गाँव ?"
और, मैंने देखा, वह हठात्
८७
गँवार से छुट्टी पा लेना नहीं
चाहता ।
वह बातों में उलझ गया, मैं चुपचाप उठकर चला आया ।