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पानवाला
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सुनकर तपाक से वह मेरे सामने आ गया।-"श्रा'ला पाइन, बिनार्सी पाइन !"
मैंने देखा, पानवाला खूब है। बढ़िया बारीक गाढ़े का सफेद कुर्ता पहने हैं। उससे मेल खाती हुई धोती । पैरों में नफीस हल्के पंजाबी जूते हैं। टोपी करीने के साथ ऐन कोण पर रखी है, जिसमें से दाईं ओर टेढ़े-मेढ़े कढ़े बाल कुछ दीखने के लिए निकले हुए है, मूळे बारीक-बारीक कटी हैं, हजामत बहुत साफ है । आँखों में सुर्मा है, ओठों पर ढंग की पान की गहरी लाली है। हाथ में जो थाली है, चाँदी की है । उस पर चाँदी के वर्क लगे पान सलीके से चिने हैं । कुछ बहुत बढ़िया शीशियाँ कतार में रखी हैं। थाली के बीचों-बीच ऊपर एक बिजली की बत्ती लगा रखी है, वह चाँदी के कमानीदार तारों से थाली पर टिकी रहती है।
यह सब देखकर हँसने को जी चाहा । मैंने कहा, “देना एक पैसे का पान ।”
उसने चाँदी की एक सलाई उठाई, पहले एक शीशी में डाली फिर दूसरी में, उसे पान के एक बीड़े पर फेरा, और उसी सलाई से उस बीड़े को उठाकर पेश कर दिया।
मैंने कहा, "यह क्या किया ?" उसने कहा, "हुजूर इत्र है, मुलाहिजा हो ।”
मैंने बीड़ा लेकर मुंह में दे लिया । पान नहीं खाता तो क्या, खाना जानता हूँ । पान उम्दा था। मेरे ख्याल में पानवाले के हक में यह नफे का सौदा नहीं है । क्या यह सजधज इस पान के सौदे के ऊपर वह रख सकता है ?
मैंने कहा, "अच्छा एक बीड़ा और लगा।" उसने उसी भाँति एक बीड़ा लगाकर सामने पेश कर दिया।
कुछ बच्चे आसपास जमा हो गये थे । पानवाला ठहर-ठहर कर कहता रहा, "श्रा'ला पाइन, बिनास पाइन !"