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वह अनुभव
खुलता है। नहीं कह सकता कि मेरी ऐसी रुचि में कारण क्या है । ऋषि-मुनि मुक्ति के लिए ही गिरि-कन्दरा में पहुँचे । और ऊँचेऊँचे बड़े महल बनाकर धनाढ्यों ने और राजाओं ने अपने लिये जकड़ ही पैदा की। इससे यह कहना सही नहीं होगा कि खुले मकान में ही खुली आत्मा निवास करती है। हम्यों में संसारी
और कुटियों में वीतरागी निवास करते सुने जाते हैं । शायद, कारण कुटिया का छुटपन और हवेली का बड़प्पन न होकर, यह हो कि हवेली मुहल्ले में घिरी है और कुटी वनाकाश में मुक्त। पर वह जो हो, मुझे मकान खुला अच्छा लगता है। सदा छोटे और बन्द मकानों में रहने की वजह से तबीयत खुलना चाहती हो, यह हो, या कि उस वक्त जेल की सेल (cell) से आ रहा था, यह असल बात हो। जो हो उस बड़े घर को विशद सुविधा पर मन जाकर उस समय बड़ा आराम अनुभव कर रहा था ।।
भोजन के लिए हम लोग चौके में पहुँचे। चौका पीछे कोठी के जनाने हिस्से में था। मकान के अन्दर ही अन्दर कोई प्राधा फाग हमें चलना हुआ। रास्ते में बगीचेनुमी एक सहन पड़ा। पर उसके अतिरिक्त गैलरी के बराबर और कई कमरे मिले जो सभी सामान और साज से भरपूर थे। गृहपति साथ-साथ चल रहे थे। वह लगभग साठ बरस की वय के होंगे। विधुर थे और पुत्र-पौत्र सब कारबार सम्भालते थे। शायद छः या कितने पुत्र थे। सब विवाहित और उनके बाल-बच्चे थे। दो कन्याएँ भी उस समय अपनी सुसराल से वहाँ आई हुई थीं। इस तरह घर हरा-भरा था। गृहपति हमारे आदरणीय साथी को यह सब बतलाते जा रहे थे। ___ भोजन के अनन्तर कुछ आराम किया। फिर नाश्ता आ पहुँचा। परिवार के लोगों में हमारी सुख-सुविधा की चिन्ता का पार न था। शाम को एक सभा हुई और वहाँ व्याख्यान आदि हुए।