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वह अनुभव
ऐसी ही एक बात एक दिन मन पर ऐसे अचानक प्रत्यक्ष हो गई कि उसके नीचे कुछ घड़ी को मन अवसन्न हो गया। उस स्थिति को हर्ष या विषाद नहीं कहा जा सकता है। एक प्रकार की परिपूर्णता की वह स्थिति है। मैं नहीं जानता कि शक्कर की डली यदि मधु में छोड़ दी जाय तो उसमें घुलते हुए उसको कैसा अनुभव होगा। अपने को खोती हुई भी वह जैसे अपनी ही मिठास को अधिकता से प्राप्त करेगी। पर मैं वह कुछ नहीं कह सकता।
सन् ३० ई० में जेल गया था । पर गाँधी-इरविन समझौते से लोग बीच में ही रिहाई पा गये थे। हम कुछ लोग पाँच-सात दिन की देरी से छूटे। क्योंकि कागजात के दिल्ली से आने का इन्तजार था । जेल से बाहर निकले तो और ही हवा थी। बाहर की विस्तीर्णता पर आँख जाकर बड़ा हर्ष मानती थी। पिंजरे से निकलकर खुला आसमान पक्षी एकाएक पाये तो कैसा लगता होगा ? यह दूसरी बात है कि आसमान में उसे पैर टेकने को कहीं ठौर न हो, और धरती पर भी किसी दूसरे ठिकाने के अभाव में वह फिर पिंजरे की याद करे। पर एकाएक तो मुक्त आकाश की पुकार के प्रति अपने को खोलकर अतिशय धन्य ही वह अनुभव करता होगा। ___ यह पंजाब के गुजरात की बात है। स्टेशन के पास एक सम्पन्न व्यापारी रहते थे । उनका नियम था कि जेल से निकले हुए किसी सत्याग्रही कैदी को वह सीधे नहीं चले जाने देते । उनका आतिथ्य लाँघना असम्भव ही था। शुद्ध विनय और प्रेम का यह अनुरोध टालते भी किस से बनता। हम लोग भी पकड़े गये। हमने कहा कि हमें दिल्ली पहुँचना है और वहाँ हमारी प्रतीक्षा होगी, क्योंकि तार पहुँच गया है। पर न, किसी तरह छुटकारा न था। हाथ जोड़ कर ऐसी विनम्र मुद्रा में उन्होंने अनुरोध दोहराया कि इन्कार करना उन्हें अभिशाप देना हो जाता। खैर, दिल्ली दूसरा तार कर दिया