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पानवाला
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कैसे कुछ सकूँगा। मैंने कहा, "तुम्हारा पान-वान का सामान कहाँ है ?" ___ "वह सब है जी, वहीं रेल में रखा है," वह बोला । साथ ही एक छोटी गठरी-सी खोलता जाता था । “बाबूजी, मुझे और कोई नहीं मिला । मेरा मन हारता जा रहा है। बाबूजी, मुझे आपका भरोसा है । मैं इतनी दूर से इसीलिए आ रहा हूँ।..."
गठरी खोलता जा रहा और बात करता जाता था । मैं मन में सशंक हो रहा था । कैसी निर्विघ्नता के साथ मुझ पर इसने भरोसा कर लिया है ! पर मैं कुछ नहीं दे सकूँगा । खूब भरोसा करने वाला ठहरा ! उसकी बेतुकी बातों को खत्म कर मैं छुट्टी ले लेना चाहता था । कहेगा, यह हो गया, वह हो गया, कुछ मदद कर दीजिए । मैंने कहा, "मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूँगा,
समझे ?"
उसके गठरी खोलते हुए हाथ ढीले हो गये। मानो याचना आँखों में भर आई।
"बाबूजी, ना मत करो। मेरा दम हारता जा रहा है । कै बरस और रह सकूँगा, कौन जानता है। फिर मैं किसे और ढूँढता फिरूँगा ? बाबूजी, हाथ जोड़ें, ना मत करो। मैं बहुत-बहुत
आपका जस मानूंगा।" ___ मैंने देखा, अभी यह चालीस बरस का न होगा, कैसी बात कर रहा है । जीवन से ऐसा हिरास हो गया है कि मौत की बात करता है । मैंने कहा, "फिर बात क्या है, कह भी तो कुछ।" ___उसने फिर गठरी खोलनी प्रारम्भ कर दी और साथ-साथ बोलने भी लगा, "अब और बहुत जगह नहीं जाऊँगा। घूमतेघूमते सात साल हो गये। अब ५-७-१० जगह और देखनी है। फिर करम में जो होगा-"