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साधु की हठ
२७. रखना और, हमारे लिए दुआ माँगना । हम दोनों को तुम्हारी माफी और दुआ चाहिए।" ___ साधु ने जरा मुस्करा दिय "हाँ, मैं तुम्हारे लिए दुआमाँगंगा
और माफी मागूंगा । मैं दुनिया के लिए यह माँगता हूँ।" और उसी मुस्कराहट के साथ पूछा, “कोई बाल-बच्चा है ?"
पत्नी ने पति की ओर देखा और पति ने पत्नी की ओर । फिर झट दोनों धरती की ओर देखने लगे। ___ पत्नी ने फिर दबी जबान से कहा, "याबा, इसके लिए भी दुआ माँगना । बरसों से हमारी साध है । तुम्हारी दुघा लग जायगी, तो जस मानेंगे।"
साधु ने कहा, "वह सब-कुछ देगा । उससे माँगे जाओ। मन, बुद्धि और देह से जितने के तुम समर्थ होगे, जितने के अधिकारी होगे और जितना तुम्हारे लिए उचित और हितकर होगा, और जितनी तुम्हारी प्रार्थना में शक्ति होगी, उतना ही वरदान तुमको उससे मिलेगा । भरोसा रक्खो, वह सब-कुछ देगा।" . कुछ देर बाद साधु ने कहा, "एक घंटे से काफी ज्यादा होगा, मैं अब जाऊँगा। मेरे लिए तुम लोग भी दुश्रा माँगना।"
वह चला गया।
डेढ़ साल में उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दोनों साधु के बड़े कृतज्ञ हैं। पुत्र को उसी का प्रसाद मानते हैं । हम पति-पत्नी की इस कृतज्ञता और मान्यता को, केवल बुद्धिहीन भावुकता समझे क्या ?