________________
४५
इक्के में और वह बेतहाशा हँस पड़ी, और युवक भी जोर से हँसा । मुझे भी हँसी-सी आई। पर मन में खीझ भी थी। देखो, इस आदमी के बहाने यह मुझसे अपना सम्बन्ध समझ सकती है और बना सकती है; यों इसके नजदीक जैसे मैं आदमी तक नहीं हूँ। मैंने जल्दी से अपना पान लिया, पैसा फेंका और इक्के पर आ रहा। कहा, "जल्दी चलो, जल्दी।"
फिर, जहाँ-तहाँ दुकाने आई, पेड़ आये, घर आये, खेत आये।
मैंने सोचा-यह क्या मामला है ? मैं इक्के पर बैठ कर चला जा रहा हूँ और दुनिया को मुझसे मतलब नहीं है। इक्के वाले का मतलब है, और वह यह कि स्टेशन पहुँचूँ और तीन आने थमाकर मैं अपनी राह पकड़। उस पानवाली के सामने मैं शून्य से गया बीता सिद्ध हुआ। अपने बच्चे के सामने मैं ही बाबूजी हूँ; और अपनी पत्नी के सामने पुरुष मैं ही हूँ। कहीं तुम अपने को, अपने में; सारी दुनिया पाते हो। दूसरे क्षण पाते हो, तुम दुनिया के निकट एक शून्य जैसा बिन्दु भी नहीं हो। संयम-असंयम क्या है ? वह पानवाली उस भहे युवक के सम्बन्ध में अपने को सर्वथा संयम की आवश्यकता से दूर, अलग, बना सकी; तभी तो यह सम्भव हुआ कि मेरे विषय में वह ऐसी संयमशील हो उठे कि मेरी उपस्थिति तक की चेतना उसमें न जागे ! मैं पुरुष हूँ, यह तक भी बोध उसे न प्राप्त हो । माहात्म्य सती का ही सुना है, कुमारी ब्रह्मचारिणी की महिमा सुनने में हमारे नहीं आई। और, पत्नी हो, तभी तो कोई सती होती है। सती होने के लिए क्यों पत्नी होना आवश्यक है ? जो पत्नी बन सकी ही नहीं, वह क्या फिर सती भी नहीं बन सकेगी ? इसका क्या उत्तर है, इसमें क्या तथ्य है ? मीरा ने अपने को कृष्ण की चेरी बनाया, कृष्ण से यह सम्बन्ध स्थापित किया जहाँ मर्यादा की कोई रेखा नहीं रह गई, संयम का ध्यान ही नष्ट हो गया। क्या इसी का यह परिणाम न था कि वह