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भूमिका
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लिखे हैं। जिससे प्रकट होता है। ग्रन्थ बिना समाप्त किये ही उनकी अकस्मात् मृत्यु हो गई थी। श्रीवर ने अन्तिम चतुर्थ तरंग का इतिपाठ लिखा है। कल्हण अपने इतिपाठ में राजतरंगिणी समाप्ति की सूचना तरंग समाप्ति के साथ देता है। शुक के उल्लेख से पता चलता है कि जोनराज तथा श्रीवर ने मिलकर ६२ वर्षों के इतिहास की रचना की थी।
श्रीवर ने सन् १४८६ ई० तक का इतिहास लिखा है। उसमें ६३ वर्ष घटा देने से सन् १४२४ ई० होता है। जैनुल आबदीन सन् १४१९ और १४२० ई० में सुल्तान हुआ था। श्रीवर ने अपने को जोनराज का शिष्य लिखा है। श्रीवर ने जोनराज की मृत्यु का समय १४५९ ई० दिया है। जोनराज का शिष्य बाल्यावस्था में ही श्रीवर रहा होगा। जोनराज की ख्याति पृथ्वीराज विजय भाष्य, किरातार्जुनीय, श्रीकष्ठ भाष्यों के कारण तत्कालीन संस्कृत जगत् में हो गयी थी। श्रीवर की मृत्यु सन् १४८६ ई० के समीप और उसकी आयु ६०, ७० वर्ष मान ली जाय तो, उसका जन्मकाल सन् १४९० ई० के पश्चात् ही ठहरता है। अनुमान के आधार पर जन्म काल सन् १४९०=१५०० ई० के अन्दर मान सकते हैं। तरंग समाप्ति की बात फतिहशाह राज्य प्राप्ति चतुर्थस्तरंग लिखता है। तरंग एवं राजतरंगिणी समाप्ति में अन्तर है। तरंग समाप्ति की बात लिखता है । जैन राजतरंगिणी समाप्ति की सूचना नहीं देता। इससे यह प्रकट होता है कि श्रीवर ने ग्रन्थ समाप्त नहीं किया था। उसे अपने मृत्यु की आशंका नहीं थी। वह अपने मृत्यु काल पर्यन्त के राजाओं का चरित लिखना चाहता था। जोनराज तथा शुक ने भी यही किया था।
श्रीवर के ग्रन्थ लिखने की योजना कल्हण के निकट है। जोनराज तथा शुक की जो भी योजना रही हो, उसकी पूर्णता का दर्शन नहीं मिलता। वे ऐसे कवियों की रचनाएँ हैं, जो लिखते-लिखते अकस्मात् शान्त हो गये थे। अथवा इस योग्य नहीं थे कि, इतिपाठ आदि लिखकर, ग्रन्थ की पूर्णता या समापन करते। श्रीवर ने योजनाबद्ध रचना की है।
उसने ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं विषयों को सर्ग एवं तरंग बद्ध किया है। एक सुल्तान का चरित्र एक तरंग में लिखा है। प्रथम तरंग में जैनुल आबदीन, द्वितीय में सुल्तान हैदर शाह, तृतीय में सुल्तान हसनशाह तथा चतुर्थ में महम्मद शाह के राज प्राप्ति एवं समाप्ति का इतिहास लिखकर, प्रत्येक तरंग को अपने में पूर्ण बना दिया है। कल्हण ने प्रत्येक वंश का इतिहास एक-एक तरंग में पूर्ण किया है । जोनराज ने यह शैली नहीं अपनाया है । शुक ने श्रीवर की शैली की अपेक्षा जोनराज की शैली का अनुकरण किया है। श्रीवर ने जोनराज की अपेक्षा कल्हण की वर्णन शैली का अनुकरण किया है।
चतुर्थ तरंग के पश्चात् भी अपने जीवन पर्यन्त श्रीवर राजतरंगिणी रचना क्रम जारी रखना चाहता था। चतुर्थ तरंग में राजतरंगिणी समाप्त न लिखने से यह स्पष्ट हो जाता है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रीवर की मृत्यु फतहशाह के प्रथम राज्यकाल के प्रथम चरण में हुई थी। फतहशाह का प्रथम राज्यकाल सन् १४८६ से १४९३ ई० है। फतहशाह के पश्चात् महम्मद शाह द्वितीय का राज्यकाल सन् १४९३ ई० से सन् १५०५ ई० है। यदि सन् १४९३ ई० तक श्रीवर जीवित रहता, तो अपने रचना एवं तरंगों की योजनानुसार, पंचम तरंग फतहशाह राज्यकाल समाप्ति तक अवश्य लिखता। उक्त कारणों से यह अनुमान लगाना तथ्यपूर्ण होगा कि श्रीवर की मृत्यु सन् १४८६ के पश्चात् और सन् १४९३ ई० के पूर्व हुई थी। सात वर्षों में किस वर्ष मृत्यु हुई थी कोई प्रमाण नहीं मिलता। यदि प्राज्य भट्ट की राजतरंगिणी मिल जाय, तो सम्भव है, इस विषय और श्रीवर के जीवन पर, कुछ और प्रकाश पड़ सकता है। श्रीवर के पश्चात प्राज्य भट्ट ने सन् १५१३ ई० का इतिहास लिखा है।