Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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॥ ढूंढक हृदय नेत्रांजनं ॥
अथवा
|| सत्यार्थ चंद्रोदया स्तकं ॥
॥ मंगलाचरण || ऐंद्र श्रेणिनता प्रतापभवनं भव्यांगिनेत्राऽमृतं, सिद्धांतोपनिपद्विचार चतुरैः प्रीत्या प्रमाणीकृता ॥ मूर्त्तिः स्फूर्तिमती सदा विजयते जैनेश्वरी विस्फुर न्मोहोन्माद घनप्रमाद मदिरा मत्तै रना लोकिता ॥ १ ॥
॥ अर्थ:- इंद्रोकी श्रेणिसेंभी नमन हुयेली, और प्रतापका घर, और भव्य पुरुषोंके नेत्रों को अमृतरूप, और सिद्धांतके रहस्य विचारी पुरुषोंने बडी प्रीति के साथ प्रमाण किई हुई, ऐसी श्री जि - नेश्वर देवकी " मूर्त्ति " सदा ( सर्वकाल ) आ दुनीयामां जयवंती रहो. । और यह मूर्त्ति कैसी है कि, विस्फुरायमान जो मोह, तिससें हुवा उन्माद, और अत्यंत प्रमाद, यही भइ ' मदिरा उनके बशसें बने है मदोन्मत्त, उनोंसें नही देखी गई यह जिनमूर्त्ति है ॥ ॥ इति काव्यार्थः ॥
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॥ किं कर्पूरमयी सुचंदनमयी पीयूषतेजोमयी, किं चूर्णीकृतचंद्रमंडलमयी किं भद्रलक्ष्मीमयी ॥ किंवा नंदमयी कृपारसमयी, किं साधु मुद्रामयी,
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