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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ २५
और गायकवाड़ ने दबाव डालकर अपना कर सूरतपर लगा दिया । १७३४ से १७५९ तक बड़ी भारी गड़बड़ रही । परस्पर फूटकी आग भभक उठी । इस गड़बड़ में अंग्रेजोंने अपना दाव जमा लिया । सूरतके नवात्र मियां अच्चनने मराठोंसे परेशान हो अंग्रेजोंसे संधि की कि अंग्रेज लोग किलेदार रहें, सेनाकी अफसरी करें तथा नवाब दो लाख रुपया प्रतिवर्ष देवे । इस वक्त किलेपर अंग्रेजोंका झंडा गड़ गया तथा नाममात्र मुगलोंका भी गड़ा रहा । इस सूरतपर अंग्रेजों के आधीन नवाब अच्चनके वंशवाले राज्य करते रहे । नवाब अच्चन उर्फ मुईनुद्दीनने १७६३ तक राज्य किया । फिर नवा हफीजुद्दिन १७६३ से १७९० तक राज्य करते रहे । १७९० में निजामुद्दीन नवाब हुए। ये १७९९ तक रहे । इनके समय में सूरतपर बड़ी विपत्ति आई । ये नवाब भी जुल्मी थे । १७९१ में इतना भारी दुर्भिक्ष पड़ा था जिससे १ रुपये में ८ सेर अनाज मिलता था । यद्यपि इस समय यह भाव प्रायः रहा करता है तो भी उस समय अनाजका भाव बहुत मन्दा रहा करता था । इस अपेक्षा वह भाव दुर्भिक्ष · रूपमें ही था । तथा १७९७ में ताप्ती नदीकी बाढ़ आई जिससे भी - सूरत की बरबादी हुई । बहुतसे व्यापारी इधर उधर चल दिये । सन् १७९९ में नसीरुद्दीन गद्दीपर बैठे। उस वक्त नवाब से अंग्रेजोंने ३ || ) लाख रुपया मांगा । नवाब दे नहीं सका तत्र बम्बई के गवर्नर डंकन के हुकमसे सूरतकी सीनेटने सूरतपर अपना पूरा कबजा ता० १५ मई सन् १८०० को जमा लिया और - नवाब की सिर्फ १ लाख रुपया पेन्शन कर दी ।
यह नियम है कि जब देशका शासक इन्द्रियोंके विषयोंमें लीन
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