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प्रस्तुति
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पाया)
भगवती भाष्य में देवों की मनुष्यलोक में आने की प्रक्रिया निर्दिष्ट है। उसे भी यहां उद्धृत किया गया है। (द्र देव) * रोग के प्रसंग में १६ प्रकार के रोग आयारो और उसकी वृत्ति से उद्धृत किए गए हैं (द्र चिकित्सा)। मण्डल कुष्ठ आदि रोगों के लक्षण, अगद (विषनाशक औषधि), पुराने घृत आदि की उपयोगिता तथा रोगी, परिचारक, वैद्य और औषधि की अर्हता के संदर्भ में चरक और सुश्रुत के ग्रंथांश उद्धृत किए गये हैं। संक्रामक रोग कुष्ठ के प्रकरण में सेटुक का दृष्टांत निर्दिष्ट है, उस पूरी घटना की जानकारी हेतु उपदेशप्रासाद (भाग-१) से सेटुक की कथा उद्धृत की गई है। (द्र चिकित्सा) * तत्त्वार्थभाष्य से सोलह भावनाओं का स्वरूप उद्धृत किया गया है। (द्र भावना) * सूयगडो से छब्बीस प्रकार की विद्याएं उद्धृत की गई हैं। (द्र मंत्र-विद्या) * व्यवहारचूलिका से चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न उद्धृत किये गए हैं। (द्र स्वप्न) * कहीं-कहीं विषय में निर्दिष्ट कथ्य की संपुष्टि के लिए उसका सक्रिय प्रयोगात्मक पक्ष कोष्ठक में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यथा-जन्म से आठवें वर्ष में दीक्षा हो सकती है-इस आदेश की क्रियान्विति के रूप में प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्य द्वारा प्रदत्त बालदीक्षा का उल्लेख किया गया है। (द्र दीक्षा) * जहां मूलपाठ या व्याख्यापाठ में पाठ की द्विरूपता है, मतैक्य नहीं है, उन दोनों पाठों का संग्रहण कर कोष्ठक में उसकी समीक्षा भी दे दी गई है। यथा उपस्थाना शय्या। (द्र शय्या) * जहां सूत्रपाठ, नियुक्ति गाथा या भाष्यगाथा दुरूह/दुर्बोध है, शब्दों की क्लिष्टता है, वहां उसकी चूर्णि और वृत्ति दे दी गई है और हिन्दी अनवाद प्रायः उसी के अनुरूप किया गया है। कहीं-कहीं वृत्तिपाठ नहीं भी दिया है किन्तु स्पष्टता के लिए हिन्दी अनुवाद विस्तार से किया गया है, वह भी चूर्णि-वृत्ति के आधार पर ही किया गया है। * प्रथम दृष्टिपात में ही विषय के सहज एवं स्पष्ट बोध के लिए कहीं-कहीं यन्त्र, स्थापना एवं चित्र दिए गए हैं। यथा-उपधि (पात्र का मुद्रिका-नौबंध), काल (करणयंत्र), तप (रत्नावलि आदि के यंत्र), लोक (अढ़ाई द्वीप का मानचित्र)। इसी प्रकार तीर्थंकर, देव, भिक्षुप्रतिमा, महाव्रत, स्थविरावलि आदि विषयों में तालिकाएं दी गई हैं। * अनेक स्थलों पर विषय की सरसता और सुबोधता के लिए कथाओं और दृष्टान्तों का समावेश किया गया है। उनमें इतिहास, संस्कृति, कला, शिक्षा, मनोविज्ञान और लोकजीवन की अमूल्य धरोहर निहित है। यथा
★ भगवान महावीर द्वारा उदायन की दीक्षा (द्र तीर्थंकर) ★ क्षमादान : प्रद्योत-उद्रायण (द्र अधिकरण) ★ पालक की क्रूरता, स्कन्दक के शिष्यों की समाधि मृत्यु (द्र अनशन) ★ ज्ञानदान की आकांक्षा : आर्यकालक का स्वर्णभूमि में गमन (द्र अनुयोग) ★ तीक्ष्ण आज्ञा : चन्द्रगुप्त-चाणक्य (द्र आज्ञा) ★ प्रवचन-प्रभावना : राजा सम्प्रति (द्र संघ) ★ अतिशयों की उपजीविता : आर्यसमुद्र-आर्यमंगु (द्र आचार्य) ★ विद्यार्थी की योग्यता वृद्धि : सर्षप आदि दृष्टान्त (द्र अंतेवासी) ★ स्वभाव परीक्षण की प्रक्रिया : ब्राह्मणी की पुत्रियां (द्र अनुयोग) ★ कलह अनुपशमन से हानि : गज-गिरगिट दृष्टांत (द्र अधिकरण)
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