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प्रस्तुति
जो विषय अधिक विस्तृत हैं, उनके भेदों में कहीं कुछ भेदों को और कहीं सब भेदों को स्वतंत्र विषय के रूप में ग्रहण किया गया है। यथा
प्रायश्चित्त के दस भेद हैं। उनमें से आलोचना (प्रथम भेद) और पारांचित (अंतिम भेद) स्वतंत्र रूप में गृहीत हैं। अनवस्थाप्य (नौवां भेद) पारांचित के अन्तर्गत गृहीत है। अन्य ज्ञातव्य बिन्दु ० जहां मूल पाठ की प्रलम्ब संलग्नता थी, उसे अनेक शीर्षकों-उपशीर्षकों में विभक्त-व्यवस्थित कर सहज गम्य बनाने का प्रयत्न किया गया है। यथा-प्रतिमा विषय में-यवमध्य-वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमा का स्वरूप, अर्हता, अभिग्रह, आहारग्रहण विधि आदि बिन्दु-उपबिन्दु। ० कहीं-कहीं विषय की प्रवाह रूप में क्रमबद्ध जानकारी के लिए अनेक सूत्रों को संलग्न रूप में ग्रहण किया गया है। यथा-भिक्षप्रतिमा विषय का दसरा बिन्द-प्रथम सात प्रतिमाओं का स्वरूप। इसमें २३ सत्रों (दशा ७/४-२६) का एक साथ संग्रहण हुआ है। श्रुतज्ञान विषय के १२ वें बिन्दु में १५ सूत्र (व्य १०/२५-३९) युगपत् संगृहीत हैं। शय्या विषय के प्रथम बिन्दु के द्वितीय उपबिन्दु में सात सूत्र (आचूला २/३६-४२) संगृहीत हैं। ० पूर्णविराम युगल (I) प्रत्येक सूत्र की पृथक्ता/परिसम्पन्नता का द्योतक है। ० जहां गाथा की केवल प्रथम पंक्ति ग्रहण की गई है, वहां पूर्ण विराम के पश्चात् बिन्दुः... लगाकर दूसरी पंक्ति के परिहार की सूचना दी गई है और जहां केवल दूसरी पंक्ति ग्रहण की गई है, वहां उसके प्रारंभ में बिन्दु..... लगाए गए हैं। ० ग्रन्थ लाघव के लिए अनेक गाथाएं, सूत्रपाठ और वृत्तिपाठ समग्रता से ग्रहण नहीं किए गए हैं। जितने पाठ से विषयबोध स्पष्ट हो सके, उतना पाठ लिया गया है। परिहृत पाठ को..... इन बिन्दुओं से सूचित किया गया है। ० कुछेक पारिभाषिक शब्दों का इन निर्धारित ग्रंथों में विस्तृत विवरण नहीं है किन्तु उनकी परिभाषा सर्वत्र उपलब्ध नहीं होती, उन शब्दों को भी हमने ग्रहण किया है। ० जिन विषयों का विवेचन इन स्वीकृत ग्रंथों में है किन्तु वे विषय यदि प्रथम भाग में विवेचित हैं तो उस विवेचन की यहां पुनरावृत्ति न कर वहां देखने का संकेत दे दिया गया है। यथा-संलेखना, परिषद् आदि । यद्यपि परिषद् के प्रसंग में मुद्गशैल-घन आदि १६ दृष्टान्तों द्वारा शिष्य/श्रोता की योग्यता-अयोग्यता का २७ गाथाओं (बृभा ३३४-३६१) में विशद निरूपण किया गया है किन्तु वह निरूपण कोश के प्रथम भाग में निरूपित होने के कारण यहां केवल क्रोस रेफरेंस द्वारा उसका संबंध जोड़ा गया है। कहीं-कहीं प्रथम भाग में निर्दिष्ट गाथाओं की इस भाग में पुनरावृत्ति भी हुई है, यदि वे गाथाएं उस भाग में व्याख्याग्रंथों में उद्धृत रूप में हैं और इस भाग में स्वीकृत ग्रंथों के मूल में हैं। अन्य आगम ग्रंथों से पाठांशों का निर्मूहण
विषय को विशद और समृद्ध बनाने के लिए अनेक स्थलों पर कोष्ठक में आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, भगवई आदि आगमों के यथास्थान उद्धरण दिए गए हैं। यथा
* अंतकृत विषय में स्था ४/१ में उल्लिखित चार प्रकार की अंतक्रिया का उल्लेख किया गया है। * अनशन विषय में पण्डितमरण के प्रकारों की मीमांसा में भगवती-जोड़ की गाथाएं उद्धृत की गई हैं। * देवों के इन्द्र, वर्ण, चिह्न, उनके अधिकार आदि के संदर्भ में ठाणं, पण्णवणा आदि के अनेक स्थल उद्धृत हैं।
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