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किरण १j
पत्रकार स्व० श्री देवकुमार जैन
रूप रंग दोऊ जात शास्त्र से प्रतीत जात प्रभुजी से नेह जात
बदन की उमंग से। जप तप की आश जात सुरपुर को बास जात, भूषण
विलास जात वेश्या के प्रसंग से ॥ इटावा निवासी श्री चन्द्रसेन जैन रचित यह कवित्त 'जैन गजट' के १६ दिसम्बर, १९०३, अंक ४ में प्रकाशित हुआ था।
इसी प्रकार ऐसे भी लेख प्रकाशित होते थे जिनमें जैनियों के तमाखू पीने पर अत्यन्त क्षोभ प्रकट किया जाता था। एतद्विषयक कविताएँ भी प्रकाशित होती थीं, जिनके द्वारा साधारण जनों के हृदय पटल पर यह अंकित किया जाता था कि तमाखू पीना सर्वथा निन्दनीय है। उदाहरण स्वरूप एक कवित्त नीचे दिया जाता है। आज के जमाने में चिलम एक बड़ी बात छोटे अरु मोटे दम सब
ही लगाते हैं। वामन औ बनियां क्षत्री डोम की न पूछे जाति, भरी देख चिलम
तापै जाय झुक जाते हैं । जैसे जीव जगत बीच अोठ (झूठन) को पसारें हाथ तसे ले
ठीकरे (चिलम) को मुह से लगाते हैं ।। कहत कवि आखों देखी मठ जनि मानौ मित्र चिलम चटोरे
ओठ (जठन) सबही की खाते हैं। सामाजिक लेखों के अतिरिक्त धर्म विषयक लेखों की संख्या भी प्रचुर मात्रा में रहती थी। ऐसे लेखों में उन लेखों का बड़ा महत्व है जो दान, तप, व्रत, संयम, श्रद्धा, भक्ति, सेवा और सत्यभाषण के भाव को हृदयंगम कराने के उद्देश्य से लिखे जाते थे।
पुरातत्व और ऐतिहासिक महत्व के भी लेख यदा कदा प्रकाशित होते थे। इनमें मारवाद के बाली परगने के बीजापुर गाँव में संवत् ६६६ का लिखा हुश्रा राष्ट्रकूट मम्मट राजा का लेख जो जैन गजट १९०३ अंक ६ में प्रकाशित हुआ था, विशेष स्थान रखता है। विक्रमादित्य और शालिवाहन के संवत् और शक पर विचार करने के लिए ऐतिहासिक लेख भी एक जगह पाया गया है।
कभी कभी दार्शनिक लेख भी रोचक और बोधगम्य भाषा में लिखे हुए मिलते थे। इनका विषय रहता था 'सृष्टि और इसका कर्ता' आवागमन आदि ।
जैन-जगत की एक मुख्य पत्रिका होने के कारण उस जगत के सभी ताजे समाचार उसमें प्रकाशित होते थे। जैन बन्धुओं से अपील करने तथा जातीय स्वार्थ के सम्बन्ध में सुझाव