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तुम जब बैठकर राम-राम करते हो तब चेष्टा होती है। चेष्टा यानी झूठ। तुम्हारा किया सब प्रपंच है। तुम्हारे किये तुम कहीं भी न पहुंच पाओगे तुमने किया कि तुम भटके| तुम ऐसी दशा में आ जाओ जहां तुम न करो, जो होता है उसे होने दो। लेकिन बिना किये तुम नहीं रह सकते।
___ एक मछुआ एक नदी के किनारे मछलियां मार रहा था। उसने दो बालटिया रख छोडी थीं। मछलियां पकड़ता, एक बालटी में डाल देता और कुछ केकड़े पकड़ लेता तो उनको दूसरी बालटी में डाल देता। मछलियां जिस बालटी में डालता उसके ऊपर तो उसने ढक्कन ढांक रखा था। और केकड़े जिसमें डालता, बिना ढक्कन के छोड़ दिया था। और पच्चीसों केकड़े उसमें बिलबिला रहे थे। और निकलने की कोशिश कर रहे थे, चढ रहे थे।
गांव के एक राजनेता-नेताजी घूमने निकले थे। उन्होंने खड़े होकर देखा। उनको कुछ बात जंची नहीं। उन्होंने कहा, भाई तू कैसा पागल है! इतनी मेहनत कर रहा है और ये केकड़े सब निकल जायेंगे। इसको ढांकता क्यों नहीं? जैसा मछलियों को डांका, ऐसा इसको क्यों नहीं ढांकता?
उसने कहा, आप बेफिक्र रहो। ये केकड़े बड़े बुद्धिमान हैं। ये करीब -करीब राजनीतिश हैं। यह राजनीति ही समझो। आपकी राजनीति जैसी हालत है इनकी। एक केकड़ा चढ़ता है, दूसरा नीचे खींच लेता है। ये निकल न पायेंगे। इनकी वही हालत है, जो दिल्ली में है। पच्चीस केकड़े हैं, एक भी निकल नहीं सकता। ये तो मैं सुबह से पकड़ रहा हूं,एक भी नहीं निकला। मैं भी देख रहा हूं कि हद राजनीति चल रही है। एक चढ़ता है, दो खींच लेते हैं उसको। इनको ढांकने की कोई जरूरत नहीं है। ये अपने ही करने से फंसे हुए हैं। इनका कृत्य ही इन्हें फंसा रखने को काफी है।
तुम जो फंसे हो, तुम्हारे ही कृत्य से फंसे हो। तुम जो खींच रहे हो, दूसरा भी तुम्हें नहीं खींच रहा है, तुम खुद ही अपने को खींच-खींचकर गिरा लेते हो। तुम्हारे जीवन में क्रांति घट सकती है। अगर तुम कृत्य को और कर्ताभाव को छोड़ दो और स्फुरणा से जीयो।
भमभूतमिद सर्वम्......। यह सब जैसा तुमने देखा, असत्य है, जैसा है वैसा तुमने अभी देखा नहीं।
संसार और परमात्मा की यही परिभाषा है। तुमने अक्सर सोचा होगा कि संसार और परमात्मा दो अलग-अलग बातें हैं। गलत सोचा है। परमात्मा को गलत ढंग से देखा तो संसार। संसार को ठीक ढंग से देख लिया तो परमात्मा। ये दो बातें नहीं हैं। यहां वैत नहीं है, एक ही है। जैसा है वैसा ही देख लिया तो परमात्मा दिखाई पड़ जाता है, और जैसा नहीं है वैसा देख लिया तो संसार। ठीक-ठीक देख लिया तो परमात्मा, चूक गये तो संसार। परमात्मा को देखने में जो चूक हो जाती है उसी से संसार दिखाई पड़ता है। परमात्मा को देखने में जो चूक हो जाती है उसी से पदार्थ दिखाई पड़ता है, अन्यथा पदार्थ नहीं है। पदार्थ तुम्हारी भांति है। परमात्मा सत्य है।
अब लोग हैं जो पूछते हैं, परमात्मा कहा है? कहते हैं, परमात्मा को देखना है। कभी-कभी कोई नास्तिक मेरे पास आ जाता है। वह कहता है, जब तक हम देखेंगे नहीं, मानेंगे नहीं। मैं उससे कहता हूं? पहले तू अपनी आंख की तो फिक्र कर ले। देखेगा यह तो ठीक है। देखने की आकांक्षा भी