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गुरु ने कहा, इसमें कुछ रहस्य नहीं। प्रभु पर भरोसा हो तो सब हो जाता है -इति निश्चयी! श्रद्धा हो, सब हो जाता है।
तो उसने कहा, कैसे करूं श्रद्धा? तो उन्होंने कहा, प्रभु का स्मरण काफी है। राम-नाम। तो उस आदमी ने दूसरे ही सुबह नदी पर जाकर कोशिश की। एकदम दोहराने लगा 'राम-राम-राम-राम।' चलने की कोशिश की, तत्क्षण डुबकी खा गया। मुंह में पानी भर गया। बामुश्किल बाहर निकलकर आया। बड़ा क्रोधित हुआ||
गुरु के पास गया और कहा कि आप धोखा दिये। मैं तो राम-राम, राम-राम कहता ही गया फिर भी इबकी खा गया। और राम-राम कहने की वजह से मुंह में भी पानी चला गया। वैसे मैं तैरना जानता हूं। मगर मैं राम-राम कहने में लगा था। और मैं इस खयाल में था कि इबकी तो होनी नहीं है तो मैंने कुछ व्यवस्था नहीं की थी। सब कपड़े भी खराब हो गये, इबकी भी खा गया। यह बात जंचती नहीं। आपने कुछ धोखा दे दिया है।
गुरु ने पूछा, कितनी बार राम कहा था? उसने कहा, कितनी बार? अनगिनत बार कहा था। पहले तो किनारे पर खड़े होकर खूब कहता रहा ताकि बल पैदा हो जाये। फिर जब देखा कि ही, अब आ गई गर्मी, तो चला और इबकी खा गया। और कह रहा था तब भी, जब इबकी खा रहा था तब भी मैं राम - राम ही कह रहा था।
गुरु ने कहा, इतनी बार कहा इसीलिए डूब गये। श्रद्धा होती तो एक ही बार कहना काफी था। यह तो अश्रद्धा की वजह से इतनी बार कहा। श्रद्धा होती तो एक बार काफी था, फिर बारा क्या कहना? राम कह दिया, बात खतम हो गई।
सच तो यह है, अगर श्रद्धा हो तो शब्द में कहना ही नहीं पड़ता। हृदय में उसकी पुलक, उसकी लहर काफी है। इतने शब्द भी नहीं बनाने पडते। हवा के एक झोंके की तरह से हृदय में कोई चीज गज जाती है, तुम्हें गुंजानी भी नहीं पड़ती। इसलिए तो नानक ने उसके जाप को अजपा कहा है। जप करना पड़े तो सच्चा नहीं। थोड़ा झूठ हो गया। जप का मतलब यह हो गया, तुम कर रहे हो, अजपा का अर्थ होता है, जो अपने से हो।
तुम बैठे हो, अचानक तुम पाओ भीतर कि गज रही बात, खिल रहे फूल। तुम द्रष्टा बन जाओ उस समय, कर्ता नहीं। अजपा का अर्थ होता है, जो तुमने जपा नहीं था फिर भी जपा गया। जो अपने आप हुआ| आगे हम सूत्रों में समझेंगे अजपा का अर्थ
'जो स्फुरण मात्र है.।'
जो तुम्हारे करने से नहीं हुआ है जिसकी स्फुरणा हुई है। वृक्षों में फूल खिले हैं; वृक्षों ने खिलाये नहीं, खिले हैं। इसलिए बड़ी गहरी सचाई है उनमें और बडी सुगंध। और उनके रंग अदभुत हैं। और प्रभु की उनमें झलक है। ये पक्षी गुनगुना रहे हैं। ये चेष्टा नहीं कर रहे हैं, यह गीत इनसे फूट रहा है। जैसे झरने बह रहे हैं ऐसे पक्षी गीत गुनगुना रहे हैं। जैसे हवा बहती है और सूरज निकलता है। और सूरज की किरणें बरसती हैं। ऐसे पक्षी गा रहे हैं। यह स्फुरण मात्र है।