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आप्तवाणी-८
होंगे?
प्रश्नकर्ता : आत्मा का ।
दादाश्री : ऐसा ! ये क्रोध - मान-माया-लोभ सभी क्या आत्मा गुण
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प्रश्नकर्ता : हाँ। सबका कर्ता आत्मा ही होना चाहिए ।
दादाश्री : लेकिन लोग तो क्रोध-मान-माया - लोभ निकालना चाहते हैं। यदि ये गुण आत्मा के होते तो फिर वे गुण तो कभी जाएँगे ही नहीं । और लोग क्या क्रोध - मान-माया-लोभ को निकालने का प्रयत्न नहीं करते?
प्रश्नकर्ता : सभी निकालने के लिए 'ट्राइ' तो कर रहे हैं।
दादाश्री : लेकिन यदि ये आत्मा के गुणधर्म होते तो कोई निकाल ही नहीं सकेगा न! यदि इन्हें निकालेंगे तो आत्मा भी चला जाएगा इसलिए ये आत्मा के गुण नहीं हैं ।
प्रश्नकर्ता : ये देह के
गुण हैं?
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दादाश्री : देह के भी गुण नहीं हैं और आत्मा के भी गुण नहीं हैं यदि इन्हें आत्मा के गुण कहेंगे, तो क्रोध - मान - माया - लोभ, ये सब निर्बलताएँ हैं, जब कि आत्मा तो परमात्मा है ! उनमें निर्बलता का एक भी गुण नहीं है !!!
और आत्मस्वरूप के कौन-से गुणधर्म ?
कुछ लोग कहते हैं न, 'जो बोलता है, वह अंदर आत्मा बोलता है ।' लेकिन जो बोलता है, वह जीव भी नहीं है और भगवान भी नहीं है, वह तो 'रिकार्ड' बोलता है । यह मेरी वाणी है न, यह भी 'रिकार्ड' ही बोल रहा है, मैं नहीं बोलता । यह सब 'रिकार्ड' बोल रहा है, ‘टेपरिकार्ड'! यह ‘ओरीजीनल टेपरिकार्ड' बजता है, उस पर से यह 'टेप' तैयार होती है, फिर उस पर से दूसरी तैयार होती है। यानी पहले यह ‘रिकार्ड' और उस पर से जितनी चाहिए, उतनी ' रिकार्ड' तैयार हो सकती हैं। अतः ये जो वाणी बोलते हैं, यह सारी 'मशीन' चल रही है, खाते हैं,