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आप्तवाणी-८
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यानी किसीने बनाया नहीं है, किसीको कुछ करना नहीं पड़ा है। इसकी आदि नहीं है, इसका अंत नहीं है । यह 'जैसा है वैसा' कह दिया है कि जगत् अनादि-अनंत है। सिर्फ एक दृष्टिफेर से जगत् दिखता है और दूसरी दृष्टिफेर से मोक्ष दिखता है । पूरा दृष्टिफेर ही है सिर्फ, और कुछ भी है ही नहीं ।
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जो 'आता' है, वह सनातन नहीं हो सकता और आत्मा सनातन वस्तु है, तो फिर उसके लिए ' आया, गया' नहीं होता । जो आता है वह तो चला जाता है। आत्मा ऐसा नहीं है ।
जगत् में सबसे प्रथम तो...
प्रश्नकर्ता : तो फिर ये जीव कहाँ से पैदा हुए?
दादाश्री : ये जीव पैदा हुए ही नहीं । आत्मा अविनाशी है। और अविनाशी पैदा नहीं होता कभी भी । वह तो हमेशा रहता है । और उसका नाश भी नहीं होता और वह पैदा भी नहीं होता । कोई पैदा नहीं हुआ है और नष्ट भी नहीं हुआ है । यह जो दिखता है, यह सारी भ्रांति है । और अवस्थाओं का नाश होता है। बुढ़ापे की अवस्था, जवानी की अवस्था, उन सबका नाश होता रहता है और वह 'खुद', जो था, वही का वही। अर्थात् अवस्था का विनाश होता है ।
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प्रश्नकर्ता : लेकिन अपनी पृथ्वी पर पहले जीव थे ही नहीं न? तो बाद में ये सब जीव आए कहाँ से?
दादाश्री : थे नहीं, ऐसा किसीने कहा था?
प्रश्नकर्ता : साइन्स कहती है।
दादाश्री : साइन्स ऐसा कहती ही नहीं है। साइन्स तो सबकुछ एक्सेप्ट करती है। यह भूमि बगैर जीवों की कभी भी थी ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : विज्ञान ऐसा भी कहता है कि पहले जीवसृष्टि हुई और फिर मनुष्यसृष्टि हुई।