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आप्तवाणी-८
ब्रह्म को पहचाना जा सकेगा। नहीं तो ब्रह्म को किस तरह पहचाना जा सकेगा? आत्मज्ञान हुआ है?
प्रश्नकर्ता : वह मेरी बुद्धि से बाहर की बात है।
दादाश्री : यानी आप साक्षीभाव की बात कर रहे हो, लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' के पास आने से यहाँ पर आपको स्व-स्वरूप प्राप्त हो जाएगा।
दृष्टिफेर से दशाफेर बर्ते प्रश्नकर्ता : ये आत्मा-परमात्मा, ब्रह्म-परब्रह्म ये सभी एक ही शब्द हैं या पर्यायवाचक शब्द हैं?
दादाश्री : ये सभी पर्यायवाचक शब्द हैं। पर्याय अर्थात् अवस्था। आत्मा किसी खास अवस्था में आत्मा माना जाता है और किसी अन्य अवस्था में वही का वही आत्मा परमात्मा माना जाता है, और वही का वही आत्मा किसी खास अवस्था में मूढ़ात्मा कहलाता है। मूढ़ात्मा अर्थात् बहिर्मुखी आत्मा, वह भी वही का वही आत्मा। अंतरात्मा कहते हैं, वह भी वही का वही आत्मा है। और परमात्मा कहते हैं, वह भी वही का वही आत्मा है। यानी कि सिर्फ आत्मा की दशा में फ़र्क है।
जैसे यहाँ पर एक वकील हो, वह पहले पैसा नहीं कमाता था, दशा टेढ़ी हो तब लोग कहते हैं कि, 'यह वकील कुछ नहीं कमाता, कड़का है।' अब कुछ अच्छा योग बैठा और वही का वही वकील फिर एकदम से कमाने लगा, तब फिर लोग कहेंगे, 'यह वकील बहुत बुद्धिमान है, श्रीमंत है।' फिर उस वकील के पैसे खत्म हो जाएँ तो कहेंगे कि 'यह तो कंगाल है', लेकिन वस्तुस्थिति में वह 'खुद' वही का वही है।
उसी तरह से ये आत्मा की दशाएँ हैं। जब तक 'इसे' संसार के सुखों की इच्छा हैं, तब तक 'वह' मूढ़ात्मा कहलाता है, बहिर्मुखी आत्मा कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : और जब आवरण दूर हो जाएँ, तो वही परमात्मा बन जाता है?