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आप्तवाणी-८
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दादाश्री : नहीं, ऐसा भी नहीं बोल सकते । कोई मनुष्य नींद में हमसे ऐसा कहे कि, ‘आप ज़रा बैठिये, मैं भी सिनेमा देखने आ रहा हूँ।' तो हमें कब तक इंतज़ार करना चाहिए कि अगर घंटा-आधा घंटा बैठें, तब तक भी वह उठे नहीं, तो हम नहीं समझ जाएँगे कि यह नींद में बोल रहा है? उसी तरह से ‘मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ', वह नींद में बोले तो किस काम का ?
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प्रश्नकर्ता : 'आत्मा हूँ' का वह अनुभव, होना चाहिए न?
दादाश्री : हाँ, अनुभव होता है न! वह तो 'ज्ञानीपुरुष' अनुभव करवा दें, तब होता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे खुद आत्मा का अनुभव करना हो तो किस तरीक़े से हो सकता है ?
दादाश्री : मैं वह तरीक़ा बताऊँ न, तो वह है तो आसान, लेकिन आपसे वह होगा नहीं। अभी लोगों का मनोबल पूरा टूट चुका है।
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फिर भी आपको एक रास्ता बताऊँ कि आपकी जेब कट गई हो, पाँच हज़ार रुपये गए हों, तो भगवान का न्याय आपसे क्या कहता है? कि भाई, यह आपके ही कर्मों का फल है, इसलिए यह जेबकतरा आपको मिल गया। यह आपके ही कर्मों का फल है, जेबकतरा तो निमित्त है लेकिन ये लोग क्या करते हैं? निमित्त को काटने दोड़ते हैं । उसे नहीं काटना चाहिए। उसे तो आशीर्वाद देने चाहिए कि तूने मुझे कर्म में से मुक्त किया । इस तरह से रहा जा सकेगा आपसे ? इतना समझ में आ जाए तो भी बहुत हो गया! आपको जेब काटनेवाले का एहसान मानना चाहिए कि इस कर्म में से मुझे छुड़वाया या फिर जब आपको कोई गालियाँ दे, उस घड़ी आपको इतना हाज़िर रहना चाहिए कि यह मेरे कर्मों के उदय से है और यह व्यक्ति तो निमित्त है। इतना हाज़िर रहना चाहिए । फिर कोई मारे, हाथ काट दे तो भी ये मेरे कर्मों के उदय हैं और यह निमित्त है, इतना ज्ञान हाज़िर रहेगा तो जाओ आपको आत्मा प्राप्त हो जाएगा। लेकिन वैसा ज्ञान इस दूषमकाल के कारण हाज़िर नहीं रह पाता । और मनुष्य का मन इतना