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आप्तवाणी-८
लक्ष्य में क्यों रहता है? क्योंकि पाप नष्ट हो गए हैं इसलिए निरंतर लक्ष्य में रहता है।
प्रश्नकर्ता : वह जो सूक्ष्म परदा है, वह 'रिमूव' हो जाना चाहिए
न।
दादाश्री : वह हम 'रिमूव' कर देते हैं।
अक्रम मार्ग पर लिफ्ट में मज़े से मोक्ष प्रश्नकर्ता : उसके लिए, आपने आत्मज्ञान के लिए अक्रम मार्ग बताया है? क्रमिक मार्ग से यह अलग है और आसान है, ऐसा आपने कहा
दादाश्री : हाँ, अक्रम मार्ग का मतलब लिफ्ट मार्ग है और क्रमिक मार्ग अर्थात् सीढ़ियाँ, सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना। और अक्रम अर्थात् लिफ्ट में बैठ जाना। उसमें आपको कुछ करना नहीं पड़ता, सीधा मोक्ष! आपको यदि करना पड़े तो 'हम नहीं मिले हैं, ऐसा कहलाएगा। यानी आपको कुछ भी नहीं करना है। एक सिर्फ पाँच आज्ञा देते हैं, जिससे वे लिफ्ट में से हाथ-पैर बाहर नहीं निकालते।
प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा मार्ग आसानी से मिलता नहीं है न कहीं
भी?
दादाश्री : है न! यह पूरा खुला है न और हज़ारों लोगों ने लिया है। कम से कम, पच्चीस हज़ार लोगों ने लिया है और आप कहते हो कि मिलता नहीं, ऐसा कैसे कह सकते हैं? मार्ग तो है, लेकिन आपको वह मार्ग मिले, तब । लेकिन उसका टाइमिंग मिलना चाहिए न? टाइमिंग मिले, तब मार्ग मिल जाता है।
बाकी, सभी तरह के मन के खुलासे हो जाएँ, तब टाइमिंग मिलता हैं। मन का समाधान हो जाए कि मार्ग सही है, उसके बाद फिर गाड़ी पटरी पर आ जाती है, नहीं तो आएगी ही नहीं न? और गाड़ी भ्रांति लाइन में घूमती ही रहेगी सब तरफ़, मेन लाइन पर तो आएगी ही नहीं। किसी