Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 361
________________ आप्तवाणी- -८ इतने गुण हैं और अनात्मा के इतने गुण हैं । इसके इतने गुणधर्म हैं, इस प्रकार जो गुणधर्मसहित जानते हैं, वे ही अलग कर सकते हैं। बाकी अन्य कोई अलग नहीं कर सकता । रियल - रिलेटिव, स्पष्टीकरण विज्ञान के ३२२ प्रश्नकर्ता : जो कुछ भी समस्याएँ और प्रश्न होते हैं, वे प्रतिष्ठित आत्मा के ही होंगे न? | दादाश्री : हाँ, प्रतिष्ठित आत्मा का ही है सबकुछ | हम प्रकृति को ही प्रतिष्ठित आत्मा कहते हैं । लेकिन अगर सिर्फ प्रकृति को ही कहेंगे न तो लोगों को ठीक से समझ में नहीं आएगा । इसलिए फिर हमने उसे प्रतिष्ठित आत्मा कहा है । प्रतिष्ठित आत्मा, वह ‘रिलेटिव आत्मा' है और दूसरा शुद्धात्मा है । शुद्धात्मा, वह 'रियल आत्मा' है । और 'रिलेटिव आत्मा', वह 'मिकेनिकल आत्मा' है, वह पूरण (चार्ज होना) - गलन (डिस्चार्ज होना) स्वरूप है। आपने यहाँ से भोजन डाला तो सुबह संडास में जाना पड़ता है । यहाँ पर पानी डाला तो बाथरूम में जाना पड़ता है, श्वास लिया तो उच्छ्वास होता रहता है, इस तरह पूरण - गलन और शुद्धात्मा, दो ही चीजें हैं ! प्रश्नकर्ता : 'रिलेटिव आत्मा' और 'रियल आत्मा', इन दोनों में क्या फ़र्क़ है? दादाश्री : ‘रिलेटिव आत्मा' वह खुद की 'रोंग बिलीफ़' से उत्पन्न हुआ है। वह रोंग बिलीफ़ फ्रेक्चर हो जाएगी तो खुद ‘रियल आत्मा' में आ जाएगा। 'ज्ञानीपुरुष' सभी ' रोंग बिलीफ़' फ्रेक्चर कर देते हैं और 'राइट बिलीफ़' स्थापित कर देते हैं । इसे सम्यक्दर्शन कहते हैं। इससे फिर खुद के शुद्धात्मा की प्रतीति बैठती है। प्रश्नकर्ता : अहम् और प्रतिष्ठित आत्मा में कोई भेद है क्या? दादाश्री : नहीं। प्रतिष्ठित आत्मा, वही अहंकार है । 'हमने' प्रतिष्ठा

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