Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 360
________________ आप्तवाणी-८ ३२१ सुनार की दृष्टि तो शुद्धता पर ही यह जो सोने की अंगूठी होती है न, वह कई बार सुनारों के पास जाए तो फिर वह सोना मिलावटी हो जाता है। लोग कहेंगे, क्या देखकर अDठी पहनते हो? यह सोना तो मिलावटी हो गया है।' तब हम मन में सोचते हैं कि यह सोना मिलावटी हो गया है, अब क्या करें इसका? तो सुनार के पास मिलावटी सोना लेकर जाएँ तो क्या वह हमें डाँटेगा? कि ऐसा मिलावटी क्यों कर दिया है? सुनार क्या ऐसे झगड़ा करता है? 'बिगाड़ दिया', ऐसा कहता है न? नहीं, सुनार डाँटने के लिए नहीं बैठा है! मिलावटी को शुद्ध करने के लिए बैठा है!! पूरा जगत् मिलावटी करके ही लाता है, उसके पास! तो फिर वह उसे शुद्ध करने बैठता है। उसमें दो-चार रुपये उसे भी मिलते हैं। वह फिर ऐसे घिसता है। मिलावट कितनी है ऐसा नहीं देखता, दूसरी धातुएँ कितनी हैं ऐसा नहीं दिखता, लेकिन सोना कितना है इतना ही देखता है। यानी 'तीन रत्ती सोना है इसमें' कहेगा। और वह अंगूठी है ९ रत्ती की। यानी ६ रत्ती दूसरा अशुद्ध माल अंदर पड़ा है। इसलिए फिर ऐसे कसौटी करता है। फिर वह कहता है कि, 'लेकिन मुझे सिर्फ कसौटी नहीं करवानी है, इसमें से जितना सोना निकले न, उसमें से मेरे छोटे बच्चे के लिए अंगूठी बना दो।' वह फिर उसे एसिड में डालता है। उसके जानकार करके देते हैं या नहीं कर देते? प्रश्नकर्ता : जानकार कर देते हैं। दादाश्री : और अगर जानकार नहीं हो, और लुहार को दें तो? लुहार कहेगा, 'जा, ले जा वापस, मेरे पास तो लोहा लाना। यह सोना मेरे पास किसलिए लाया है?' फिर अगर सुथार को दें तो वह भी मना करेगा! अब सेठ लोग को दें कि, 'भाई, इतना कर दो न!' तब कहेगा कि, 'अरे, सुनार के पास जा, किसी पारखी के पास जा न, यहाँ पर क्या है?' अर्थात् यह जो, आत्मा जो अशुद्ध हो चुका है, उसे शुद्ध करना हो, तो 'ज्ञानी' के पास जाना चाहिए। जहाँ पर पूरा कारखाना है और जो जानते हैं कि आत्मा के

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