Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 363
________________ आप्तवाणी-८ नहीं है। इसलिए 'तू' 'आत्मा' को जान, तो इन सबसे 'तू' मुक्त ही है। यही 'अज्ञान' निकालना है, नहीं तो करोड़ जन्मों तक भी 'तेरा' अज्ञान जाएगा नहीं । ३२४ पच्चीस प्रकार के मोह हैं, वे पच्चीस प्रकार के मोह चार्ज होते हैं और डिस्चार्ज होते हैं । डिस्चार्ज तो नियम से होगा ही और 'रोंग बिलीफ़' है, इसलिए वापस चार्ज होता रहता है । अपने यहाँ पर, हम ज्ञान देते हैं, फिर चार्ज होना बंद हो जाता है और सिर्फ डिस्चार्ज ही बचता है । I इसलिए 'हमने' यह नया शब्द 'प्रतिष्ठित आत्मा', दिया है। भगवान ने लोगों को बताया था, लेकिन लोगों को वह समझ में नहीं आया, इसलिए हमें यह प्रतिष्ठित आत्मा शब्द देना पड़ा, लोगों को उनकी खुद की भाषा में समझ में आए, उस तरह से । और भगवान ने जो कहा है उस पर आँच नहीं आए, उस तरह से यह शब्द, 'प्रतिष्ठित आत्मा' दिया है। क्योंकि आपको आपकी भाषा में समझ में आना चाहिए न ? समझ में नहीं आए, तो आप क्या करोगे फिर ? जग - अधिष्ठान, ज्ञानी के ज्ञान में जगत् जिसमें से उत्पन्न हुआ है और जिसमें लय होता है, वह अधिष्ठान कहलाता है। तो पूछते हैं कि, 'शास्त्रों में ऐसा अधिष्ठान क्यों नहीं बताया?' नहीं, तीर्थंकरों ने कोई भी वस्तु बिन बताए नहीं रखी है । फिर यदि आपको नहीं मिल पाए तो वह बात अलग है। अत: हमने क्या कहा है? यह जगत् किसमें से उत्पन्न हुआ है? तब कहे, यह सब ‘प्रतिष्ठित आत्मा में से उत्पन्न हुआ है और उसीमें फिर लय हो जाता है। इसमें मूल आत्मा को कुछ लेना-देना है ही नहीं । यानी कि यह तो सिर्फ विभाविक दृष्टि ही उत्पन्न हुई है । ' दर्शन शुद्ध होने पर शुद्ध में समावेश एक प्रतिष्ठित आत्मा और एक दरअसल आत्मा। प्रतिष्ठित आत्मा 'मिकेनिकल' है। वह खाए- पीए तभी जीवित रह सकता है, वर्ना ऐसे श्वास

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