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आप्तवाणी-८
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भी जगह पर मेन लाइन पर कोई होता भी नहीं है। भ्रांत लाइनों में ही होते हैं और अक्रम मार्ग अर्थात् मेन लाइन। यानी कि 'फुलस्टोप'-मार्ग है यह, 'कोमा'-मार्ग नहीं है यह।
क्रमिक मार्ग का अर्थ क्या है? कि स्टेप बाइ स्टेप। इसका मतलब यह है कि कोई संतपुरुष मिले कि पाँच हज़ार सीढ़ियाँ चढ़ जाता है। फिर कोई जान-पहचानवाला मिले तो वापस केन्टीन में खींच ले जाए, तो वापस तीन हज़ार सीढ़ियाँ नीचे उतर जाता है। ऐसे करते हुए चढ़नाउतरना, चढ़ना-उतरना करता रहता है। इसलिए वह सेफसाइड मार्ग नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : अक्रम मार्ग की ओर मुड़ने के लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : आप यहाँ पर आए हो और आप कह दो कि, 'साहब, मेरा निबेड़ा ला दीजिए', तो निबेड़ा आ जाएगा। यह तो अंतराय टूट चुके हों, तभी ऐसा बोल पाते हैं। नहीं तो "बाद में हो जाएगा' आगे जाकर देख लेंगे", ऐसा करके दो वर्ष निकाल देते हैं। फिर वापस आते हैं। लेकिन आए हैं तो प्राप्ति तो होगी ज़रूर। हज़ार में से एक-दो लोगों के केस फेल होते हैं, बाकी नहीं। दूसरे सभी केसों में प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि ऐसा नकद कौन छोड़ेगा? और फिर, कुछ भी करना नहीं है उसे! सिर्फ लिफ्ट में बैठना ही है।
ज्ञानी के पास पहुँचा, वही पात्रता प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान किसीको भी प्राप्त हो सकता है, या उसके लिए कोई पूर्व भूमिका होनी चाहिए?
दादाश्री : नहीं। वह यहाँ पर आया वही उसकी भूमिका, और किसी भूमिका की ज़रूरत नहीं है। यहाँ पर आया है न, वही भूमिका। बाकी वैसी भूमिका तो कब पास करते ये लोग? और अपने यहाँ पर तो फेल हो चुके लोग भी चलते हैं। फेल हो चुके लोगों को मोक्ष के मार्ग पर ले जाएँगे।